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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ : पद्मावती तदनुसार भवनाग एक सम्राट थे। उनसे सम्बन्धित जितने स्थानीय क्षेत्रों के राजा थे, वे अपने अधिराज भवनाग की सार्वभौमिक सत्ता को स्वीकार करते थे। किन्तु इस सत्ता का क्षेत्र केवल बाह्य स्वरूप तक ही सीमित था। अपने आन्तरिक मामलों में ये राजा स्वतंत्र थे । इस प्रकार यह एक संघीय शासन का स्वरूप ग्रहण कर लेता है । वाकाटकों के शिलालेखों से नागवंशी राजाओं के विषय में बहुत-सी जानकारी प्राप्त हो जाती है। डॉ. दिनेशचन्द्र सरकार ने 'सिलेक्ट इन्स्क्रिप्शंस' (पृष्ठ ४१८) में चम्मक में प्राप्त प्रवरसेन (द्वितीय) के ताम्रपत्र के सम्बन्ध में इस बात का उल्लेख किया है, कि नाग साम्राज्य के उन्मूलन के पश्चात् भी गुप्त इन नागवंशीय राजाओं को भुला नहीं पाये और उनका उल्लेख किसी-नकिसी रूप में करना पड़ा । गौतमी पुत्र वाकाटक भी महाराज श्री भवनाग का दौहित्र था । भवनाग ने अपनी लड़की की शादी विन्ध्यशक्ति के प्रतापी पुत्र प्रवरसेन के पुत्र के साथ कर दी थी। इस लेख मे इस बात की ओर भी संकेत मिल जाता है, जिसके कारण भारशिव राजा भारशिव कहलाये। उन्होंने शिवलिंग को सदैव साथ रखा। ये शिव के परम भक्त थे। भवनाग की और चर्चा करने से पूर्व विन्ध्यशक्ति के विषय में संक्षिप्त विचार आवश्यक है। ३.११ विन्ध्यशक्ति विन्ध्यशक्ति का समय डॉ. जायसवाल के अनुसार २४८ से २८४ ई० तक (अर्थात ३६ वर्ष का शासनकाल) एवं डॉ० अल्तेकर के अनुसार २५५ ई० से २७५ ई० तक (अर्थात ३० वर्ष का शासनकाल) ठहराया गया है । समय का यह अन्तर विशेष महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि विन्ध्यशक्ति के सन्दर्भ से यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है, कि नागवंशी राजाओं का शासन दक्षिण तक फैल चुका था और अन्य राजा भी उनके पराक्रम का लोहा मानने लगे थे। विन्ध्यशक्ति एक साधारण व्यक्ति मात्र था, किन्तु अपने पराक्रम से उसने पर्याप्त शक्ति अजित की थी। उसकी शक्ति को पहचान कर ही उसे सेनापति बनाया गया होगा । वैसे विन्ध्यशक्ति किसी व्यक्ति का नाम न हो कर किसी पद का सूचक प्रतीत होता है । यह पद सम्भवतः सेनापति का ही होगा। डॉ० अल्तेकर ने पुराणों के कथन का सन्दर्भ देते हुए विन्ध्यशक्ति को विदिशा और पुरिका का शासक कहा है । वृहत्संहिता में तो पुरिका को दशार्ण का निकटवर्ती बतलाया है । उसके एक ओर विदर्भ और दूसरी ओर मूलक बतलाया गया है । अल्तेकर ने वाकाटकों का मल स्थान पश्चिमी मध्य देश या बरार बतलाया है। किन्तु डॉ० जायसवाल ने इसे चिरगाँव से छः मील दूर झाँसी जिले में पहचाना है। यह ओड़छा राज्य के उत्तरी भाग में पड़ता है। वाकाटकों के सम्बन्ध में डॉ० जायसवाल का कथन उल्लेखनीय है : "उसके पास ही विजौर नाम का एक और गाँव है और प्राय: वागाट के साथ उसका भी नाम लिया जाता है । लोग विजौर वागाट कहा करते हैं । यह ओड़छा की तहरौली तहसील में है। यह कयना और दुगरई नाम की दो छोटी-छोटी नदियों के बीच में है, जो For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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