Book Title: Padmavati
Author(s): Mohanlal Sharma
Publisher: Madhyapradesh Hingi Granth Academy

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४: पावती संस्कृति का केन्द्र तो अवश्य थी, किन्तु सभी गणराज्य पूर्णतः अधीन नहीं थे। कई स्वतंत्र राज्य थे और अपने शासन और कार्यों के लिए स्वतंत्र होते हुए भी कुछ मामलों में केन्द्र से निर्देश प्राप्त करते होंगे । केन्द्र इनका प्रतिनिधित्व करता था, चाहे वे अधीनस्थ राज्य हों अथवा स्वतंत्र राज्य । उदाहरण के लिए युद्ध का प्रश्न है। युद्ध-कार्यों में कुषाणों के विरुद्ध संघबद्ध प्रयास किया गया था, जिसका नेतृत्व भारशिव नागों ने किया था। यद्यपि इस सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद है । डॉ० अल्तेकर इस स्थापना से सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं कि कुषाणों के साम्राज्य को ध्वस्त करने में पहला कदम यौधेयों ने उठाया, और अपने निकट पड़ोसी कुबिन्द और अर्जुनायनों के सहयोग से कुषाणों को परास्त किया था। किन्तु इस बात को सही मानते हुए भी मध्यदेश की समस्या हल नहीं हो पाती। मध्यदेश से कुषाणों को परास्त करने का कार्य करने वाले नवनाग और मालव संघटित हुए हाग । कुषाणों के हाथ से पांचाल, मथुरा, सारनाथ, मगध, पद्मावती और विदिशा के निकल जाने का एकमात्र कारण था, एकाधिक शक्तियों का सघबद्ध प्रयत्न । नवनागो की श्रेष्ठता और गुरुता का आभास हमें कुछ अन्य साक्ष्यों के द्वारा भी होता है। वाकाटकों से नवनागों के विवाह-सम्बन्ध का उल्लेख प्रायः किया जाता है। नवनागों की कन्या प्राप्त करने पर वाकाटकों को गर्व का अनुभव हुआ था, और इस राजनैतिक विवाह को बड़ा महत्व दिया गया था । वाकाटकों के शिलालेख में भी इस बात का उल्लेख किया गया। एक दूसरी बात यह, कि गुप्त सम्राटों ने भी कुबेरनागा से विवाह किया था। इसका कारण भी नागों की श्रेष्ठता ही रही होगी। समुद्रगुप्त के इलाहाबाद वाले कीर्तिस्तम्भ मे नवनागों का उल्लेख भी नवनागों की श्रेष्ठता का परिचायक है। डॉ० जायसवाल ने नागों के तीन राजवंशों का उल्लेख किया है। भारशिवों का एक बंश था। वे साम्राज्य के नेता और सम्राट् थे, और उनके अधीन प्रतिनिधि-स्वरूप शासन करने वाले और भी कई वंश थे । कई प्रजातंत्री राज्यों को इसी संघ में सम्मिलित बताया गया है। पद्मावती और मथुरा दो शाखाएँ भारशिवों के द्वारा स्थापित की गयी थीं। पद्मावती वाले राजवश को उन्होंने टाकवंश नाम दिया है, जिसका आधार 'भावशतक' नामक पुस्तक है, जो गणपति नाग के समय में लिखी गयी थी और उसी को समपति की गयी थी। मथुरा वाले वंश का नाम यदुवंश था । 'कौमुदी महोत्सव' नामक ग्रन्थ में इस वंश का नाम आया है । इस सम्बन्ध में उनका निष्कर्ष यह है, कि भारशिव यदुवंशी थे और टक्क देश पंजाब से आये थे। किन्तु नागों के तीन वंशों वाली बात को अन्य इतिहासकारों द्वारा समर्थन नहीं मिला है । पुराणों में भी इन वंशों का उल्लेख नहीं मिलता। अतएव नागों के तीन वंश न मान कर तीन विभिन्न शाखाएँ मानना अधिक समीचीन होगा। ये नवनाग वंश की ही तीन शाखाएँ थीं, जैसा कि "नवनागाः पद्मावत्यां कान्तिपुर्याम् मथुरायाम्" कथन से प्रगट होता है। ___ इस सम्बन्ध में एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है, कि मथुरा के नागों ने अपने सिक्के प्रचलित नहीं किये। वहाँ सम्भवतः टकसाल नहीं थी, टकसाल थी पद्मावती में । इससे For Private and Personal Use Only

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