________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्मावती की संस्थापना : १५
इतिहास लेखक गिबन ने हूणों की विशेषताएं बताते हुए लिखा है कि इन लोगों के चेहरों पर प्रायः दाढ़ियाँ नहीं होती थीं। इस कारण इन लोगों को न तो युवावस्था में कभी भी पुरुषोचित शोभा प्राप्त होती थी और न वृद्धावस्था का पूज्य तथा आदरणीय रूप हो मिल पाता था । वनस्पर की आकृति की तुलना भी हूणों की आकृति से की जा सकती है। वह देखने में मंगोल सा जान पड़ता था। पुराणों में वनस्पर की वीरता की बड़ी प्रशंसा की गई है । उसने पद्मावती से बिहार तक अपने राज्य का विस्तार किया था । भागवत तथा अन्य पुराणों में पद्मावती को वनस्पर के शासन का केन्द्र बिन्दु बताया है। किन्तु उसके राज्य का विस्तार मगध तक हो गया था।
___ वनस्पर के वंशजों को बुन्देलखण्ड में बनाफर कहा जाता है । इनकी वीरता का वर्णन अब तक बढ़ा-चढ़ा कर किया जाता है। वे अपनी वीरता और युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध थे । बनाफरों की उत्पत्ति पर विचार करने पर जाना जाता है कि ये लोग निम्न कोटि के राजपूत थे और उच्च कोटि के राजपूतों के साथ शादी सम्बन्ध करने पर इन्हें बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। बुन्देलखण्ड में तो एक बोली ही बनाफरी बोली के नाम से जानी जाती है । बृज के कुछ भाग में तो बनाफर मुहाविरे के रूप में व्यवहृत होता है तथा यह शब्द किसी व्यक्ति के नटखटपन और शैतानियत से भरे स्वरूप की ओर संकेत करता है। उदाहरणार्थ--'वह बड़ा बनाफर है'--का अर्थ होगा-वह बड़ा नटखट
और शैतान है । बनाफर के इस अर्थ का विकास सम्भवतः वनस्पर की भीषण मारकाट के कारण हो गया होगा । वनस्पर ने अपनी प्रजा में से ब्राह्मणों का बिल्कुल नाश ही कर दिया था। उसके अत्याचार तो उच्च वर्ग के हिन्दुओं पर भी बहुत हुए थे। बताया जाता है कि उसने निम्न कोटि के लोगों तथा विदेशियों को अपने राज्य में उच्च पद दिये थे। भारत में कुषाणों की नीति को निर्धारित करने वाला यह वनस्पर ही समझा जाता है । यह ऐसी नीति थी जिनमें अन्य धर्मावलम्बियों का शोषण किया जाता था तथा राजनैतिक उद्देश्य की सिद्धि के लिए उन पर अनेकानेक अत्याचार किये जाते थे। धन देकर बाहर से लोगों को बुलाने का कार्य भी उसकी नीति के अन्तर्गत था।
पद्मावती एवं विदिशा उस समय भारत की राष्ट्रीयता के नवोन्मेष के प्रधान केन्द्र समझे जाते थे, किन्तु वनस्पर इन भावनाओं के उन्मूलन पर तुला हुआ था। उसने राष्ट्रीय भावनाओं को प्रोत्साहित करने वाले ब्राह्मणों का तो विनाश किया ही साथ ही ऐसे क्षत्रियों को, जो शकों को हेय दृष्टि से देखते थे नष्ट कर दिया गया। ये वनस्पर दूसरे धर्म के लोगों को निश्चय ही बड़ा कष्ट देते थे। इसने कैवों (जिन्हें अब केवट कहा जाता है) और पंचकों का ( जिन्हें शूद्रों से भी हेय समझा जाता है ) एक ऐसा वर्ग तैयार किया था, जो शासन के क्षेत्र में सहायता किया करता था । स्पष्ट है, ये दोनों ही जातियाँ निम्न कोटि की थीं जिन्हें समाज में कोई सम्मानपूर्ण स्थान नहीं मिला था, जिनमें समाज के प्रति आक्रोश भरा हुआ था। उसने शक पुलिदों को भी बाहर से बुलाया था । इस प्रकार जहाँ तक बन सका इसने अपनी सुरक्षा तथा शक्ति सन्तुलन के लिये बाहर के लोगों को बुलाया था। ये लोग भी
For Private and Personal Use Only