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पद्मावती की संस्थापना : १७
क्षत्रप का ऐसा लेख भी मिला है जिसकी नीति ही यह थी कि ब्राह्मणों और सनातनी जातियों का जहाँ तक हो सके दमन किया जाय। बताया जाता है कि अपनी प्रजा को ब्राह्मणहीन बनाना उनकी धार्मिक और सामाजिक नीति का एक अंग बन गया। अलबरूनी ने एक ऐसे शक शासन की विशेषता का उल्लेख किया है, जिसका शासन ईसवी सन् ७८ के आस-पास भारत में प्रचलित था। डॉ० जायसवाल ने इसका निम्न उद्धरण प्रस्तुत किया है :
"यहाँ जिस शक का उल्लेख है, उसने आर्यावर्त में अपने राज्य के मध्य में अपनी राजधानी बना कर सिन्धु से समुद्र तक के प्रदेश पर अत्याचार किया था। अपने हिन्दुओं को आज्ञा दे दी थी कि वे अपने आपको शक ही समझे और शक ही कहें, इसके अतिरिक्त अपने आपको और कुछ न समझे या न कहें।" (२,६)
गर्ग संहिता में कुछ इसी प्रकार के विचार व्यक्त किये गये हैं। अन्धकारयुगीन भारत में दिया गया उद्धरण इस प्रकार है :
"शकों का राजा बहुत ही लोभी, शक्तिशाली और पापी था ।.........इन भीषण और असंख्य शकों ने प्रजा का स्वरूप नष्ट कर दिया था और उनके आचरण भ्रष्ट कर दिये थे।'' (पृष्ठ ८४)
कथा सरित्सागर में गुणाढ्य ने भी म्लेच्छों के अधार्मिक कृत्यों का उल्लेख किया
___"ये म्लेच्छ लोग ब्राह्मणों की हत्या करते हैं और उनके यज्ञों तथा धार्मिक कृत्यों में बाधा डालते हैं । ये आश्रमों की कन्याओं को उठा ले जाते हैं । भला ऐसा कौन सा अपराध है जो ये दुष्ट नहीं करते ?' (कथा सरित्सागर १८)
इस प्रकार यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कुषाणों ने हिन्दुओं की सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए अनेक प्रयत्न किये । स्पष्ट है, वनस्पर ने भी अपने पद्मावती के शासन के समय अनेक अत्याचार किये होंगे । इन अत्याचारों के कारण ही 'बनाफर' शब्द दुष्ट और दुराचारी अर्थ के लिए रूढ़ हो गया। किन्तु इसमें संदेह नहीं कि ई० दूसरी सदी का अन्त होते-होते मथुरा और पद्मावती प्रभृति प्रदेशों से कुषाण सत्ता उखड़ गई थी। मध्यप्रदेश तथा पूर्वी पंजाब से कुषाणों को हटाने में कई शक्तियों का हाथ था। पद्मावती, कान्तिपुरी तथा मथुरा से तो नागवंशी राजाओं ने कुषाणों को भगाने में पूरी पूरी शक्ति लगा दी थी। कौशांबी तथा विध्य-प्रदेश से मय राजाओं की सहायता से एवं मध्यप्रदेश से मालवों, यौधेयों एवं कुणिंदों के द्वारा राजस्थान और पंजाब से कुषाणों को भगाया गया।
३.५ पद्मावती के नवनाग
शिवनंदी मुख्य शुंग शाखा के राजाओं के बाद हुआ। किन्तु इसमें संदेह नहीं कि शिवनंदी विदिशा का अन्तिम नाग राजा हुआ और उसके पश्चात विदिशा पर शुंगों का आधिपत्य हो गया था। विदिशा पर आधिपत्य जमाने वालों में क्रमशः शक, मालव, सास
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