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साहित्य और इतिहास :
२.३ 'मालती माधव' में पद्मावती
संस्कृत कवि एवं नाटककार श्री भवभूति ने अपने नाटक 'मालती माधव' में पद्मावती वती का जो उल्लेख किया है वह विशेष रूप से महत्व का है। इस वर्णन से पद्मावती के प्राचीन गौरव पर प्रकाश पड़ता है। नवें अंक के प्रारम्भ में कामंदकी की पूर्व शिष्या सौदामिनी के शब्द विशेष रूप से उद्धृत करने योग्य हैं :
सौदामिनी-"यह मैं सौदामिनी हूँ। ऐश्वर्य सम्पन्न श्री पर्वत से पद्मावती राजधानी को प्राप्त कर वहाँ पर मालती के विरही होने से पूर्व परिचित देश को देखने में असमर्थ हो कर माधवजी गृह छोड़ कर मकरंद आदि मित्रों के समुदाय के साथ बड़ी द्राणां (नदी का मध्य स्थान ), पर्वत, दुर्गम मार्ग इनसे परिपूर्ण स्थान हो गये हैं, ऐसा सुन कर मैं उनके पास जा रही हूँ। अरे, इस तरह से उड़ी हूँ कि जैसे सम्पूर्ण पर्वत, नगर ग्राम , नदी इनका समूह नेत्रों से देख रही हूँ। पीछे देख कर वाह वाह ।"१ ।
पद्मावती नगरी निर्मल जल वाली और विशाल सिंधु तथा पारा नदी के उपकरण के बहाने से उन्नत राजप्रासाद, देव मंदिर, नगर का द्वार और अट्टालिका इनके घर्षण से पहले विदारित और पीछे त्यक्त आकाश को जैसे धारण कर रही है ।२
फिर भी, जिसकी तरंग परम्परा चल रही है। वह प्रसिद्ध लवणा नदी परिशोभित हो रही है । वर्षा के समय में देशवासियों के हर्ष के लिये जिसकी गर्भिणी गौओं के प्रिय और नये तृण विशेषों की पंक्ति को धारण करने वाली और सेवनीय स्थान वाली वनपंक्ति विशेष शोभित हो रही है।
(दूसरी ओर देख कर) यह वही भगवती सिन्धु नदी का पाताल को विदारित करने वाला तटप्रपात है। जलपूर्ण गम्भीर शब्द वाले नये मेघ के गर्जन के सदृश प्रचण्ड जिस तट
१. सौदामिनी :-एषास्मि सौदामिनी। भगवतः श्रीपर्वतादुपेत्य पद्मावती तत्र मालती
विरहणो माधवस्य संस्तुत प्रदेश नासहिष्णौःसंस्त्यायं परित्यज्य सहसुहृद्वर्गेण वृहद् द्रोणी शैलकांतार प्रदेशमुपश्र त्याधुना तदन्तिकं प्रयामि । भौः, तथाहमुत्पतिता यथा सकल एव गिरि-नगर ग्राम सरिदरण्य व्यतिकरणश्च चक्षुषा परिशिच्यते । पश्चादविलोक्य, साधु साधु । २. पद्मावती विमल वारिविशाल सिंधु पारासरित्परिकरच्छलतो विभर्ति । उत्तुङ्ग सौध सुरमन्दिर गोपुराट्ट संघट्ट पाटित विमुक्तमिवांतरिक्षम् ॥ ३. अपिच,
सैषा विभाति लवणा वलितोमिपंक्ति रभ्रागमे जनपदप्रमदाययस्याः । गौगर्भिणी प्रियनवोलपमाल भारि सेव्योपकण्ठ विपिनावलयो विभांति ॥
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