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८. पद्मावती संख्या नौ निर्धारित की जाती रही, किन्तु कालान्तर में 'नव' के 'नौ' अर्थ का परित्याग कर दिया गया और 'नव' शब्द पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा के नवनागों के अर्थ का द्योतक बन गया। विष्णु पुराण में नवनागों के जिन राज्यों के विस्तार का उल्लेख किया गया है उनमें पद्मावती भी है । विष्णु पुराण का उल्लेख है-- 'नवनागाः पद्मावत्यां कान्तिपुर्या मथुरायामनुगंगा प्रयागं मागधा गुप्ताश्च भौक्ष्यंति'। इसका तात्पर्य यह है कि जब नव नाग पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा में राज्य कर रहे थे तब मगध के लोगों के साथ गुप्त गंगा तट वाले प्रयाग में राज्य करने लगे। डॉ० काशी प्रसाद जायसवाल ने 'अनुगंगा प्रयागं मागधा गुप्ताश्च भौक्ष्यन्ति' का आशय 'मागध गुप्त लोग गंगा तट वाले प्रयाग पर राज्य करते थे'१ से लिया है। किन्तु इससे नवनागों के पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा पर राज्य करने सम्बन्धी तथ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
पुराणों में अश्वमेध यज्ञ करने वाले स्वतन्त्र शासकों की सूची भी दी गई है। आज जिन नाग राजाओं के पद्मावती पर शासन करने का उल्लेख किया जाता है उनमें से अधिकांश का उल्लेख पुराणों में मिलता है। जिन राजाओं का उल्लेख पुराणों में नहीं मिलता, उस कमी को सिक्के तथा अन्य प्रमाण पूरा कर देते हैं। किन्तु नवनागों के पद्मावती पर शासन करने का सर्वप्रथम उल्लेख पुराणों में मिलता है।
२.२ बाणभट्ट का हर्षचरित
पद्मावती का उल्लेख करने वाली दूसरी कृति है बाणभट्ट का 'हर्षचरित' । यह ईसा की सातवीं शताब्दी की कृति मानी जाती है। 'हर्षचरित' का उल्लेख है : 'नागकुल जन्मनः सारिका श्रावित मंत्रस्यासीन्नाशो नागसेनस्य पद्मावत्यां'। इस उल्लेख के द्वारा तो नागवंशीय शासक नागसेन के विनाश का ही बोध होता है, परन्तु इससे पद्मावती की स्थिति का स्पष्टीकरण नहीं हो पाता। पद्मावती पर नागों ने शासन किया, इस बात पर कोई मतभेद नहीं है।
'हर्षचरित' के इस उल्लेख से एक अन्य तथ्य पर अवश्य प्रकाश पड़ता है। बाणभट्ट ने जिस सहज भाव से पद्मावती का उल्लेख किया है, उससे एक बात का तो अनुमान लगाया ही जा सकता है कि उसके समय में पद्मावती नगर कोई अपरिचित नगर नहीं रहा होगा जिसकी स्थिति के स्पष्टीकरण का प्रयास करने की आवश्यकता अनुभव की जाती हो । सातवीं शताब्दी में पद्मावती का गौरव अक्षुण्ण रहा होगा, जिसके उल्लेख मात्र के द्वारा ही उसकी स्थिति का स्पष्टीकरण हो जाता होगा । साथ ही 'पद्मावती' उस समय एक सुपरिचित नगर रहा होगा। कालान्तर में तो पद्मावती की स्थिति ही नितांत भ्रामक और अनिश्चित हो गई। साथ ही सिक्कों की प्राप्ति निरंतर न होती रहती और उत्खनन का कार्य न किया जाता तो आज भी पवाया के रूप में पद्मावती को पहचानना दुरूह हो जाता ।
१. अं० यु० भा०, पृष्ठ २६६ ।
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