Book Title: Padmavati
Author(s): Mohanlal Sharma
Publisher: Madhyapradesh Hingi Granth Academy

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती : ३ "नवनागास्तु भोक्ष्यंति पुरी पद्मावती नृपा : मथुरांच पुरी रम्यां नागा भोक्ष्यंति सप्त वै।" तथा, “नवनागाः पद्मावत्यां कांतिपुर्या मथुरायां'। इस प्रकरण से यह बात सिद्ध हो जाती है कि नव नागों ने पद्मावती, कान्तिपुरी एवं मथुरा में अपनी राजधानियाँ बना कर राज्य किया। विष्णु पुराण के इस उल्लेख में पद्मावती एवं कान्तिपुरी की स्थिति के विषय में कोई संकेत नहीं मिलता। मथुरा के सम्बन्ध में तो कभी कोई विवाद उपस्थित नहीं हुआ, उसका प्राचीन और अर्वाचीन एक ही नाम बना रहा। किन्तु पद्मावती और कान्तिपुरी के सम्बन्ध में इतिहासकारों में बड़ा विवाद बना रहा। डॉ० अल्तेकर ने तो यहाँ तक कह दिया कि मिर्जापुर के समीप वाली कान्तिपुरी में कभी भी नागवंश का शासन नहीं रहा । १.४ पद्मावती तथा कान्तिपुरी सम्बन्धी विवाद का इतिहास ___ अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि पुराणों का उपर्युक्त कथन क्या आंशिक रूप से ही सत्य है ? श्री विल्सन एवं श्री कनिंघम कान्तिपुरी को वर्तमान कुतवार के रूप में पहचानते हैं । ग्वालियर राज्य के पुरातत्व विभाग के भूतपूर्व संचालक श्री मो० वा० गर्दै उक्त दोनों विद्वानों के मत से सहमत हैं। ग्वालियर राज्य के पुरातत्व विभाग के संवत् १९६० के वार्षिक विवरण में इस प्रश्न पर निर्णायक ढंग से विचार किया है। किन्तु डॉ० काशी प्रसाद जायसवाल मिर्जापुर जिले के कंतित को ही कान्तिपुरी मानते हैं। डॉ० अल्टेकर डॉ० जायसवाल के इस मत से सहमत नहीं हैं। उनका मत है- "इस बात का कोई आधार नहीं है कि कान्तिपुरी पर किसी नागवंश का कभी राज्य रहा था, अथवा सिक्कों पर नव नामक राजा नाग था । उसके सिक्के कान्तिपुरी में नहीं मिले हैं, और किसी भी ज्ञात नाग सिक्के से उसकी समानता नहीं।" किन्तु डॉ० अल्तेकर की इस धारणा का आधार ही गलत है। कंतित यदि कान्तिपुरी नहीं तो वहाँ नागवंशों के सिक्के मिलने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। इस आधार पर यह कहना भी त्रुटिपूर्ण है कि किसी कान्तिपुरी पर किसी नागवंश का शासन ही नहीं रहा था। कुतवार में यदि उत्खनन का कार्य किया जाय तो स्थिति कुछ अधिक स्पष्ट हो सकेगी। वैसे वहाँ एक ही निधि में लगभग १८,००० से भी अधिक नाग सिक्के प्राप्त हुए हैं। इतने अधिक सिक्कों का मिलना एक महत्वपूर्ण बात है । कुतवार की स्थिति का स्पष्टीकरण करते हुए कनिंघम ने एक जनश्रुति का भी उल्लेख किया है। उसके अनुसार पदावली, सुहानियाँ एवं कुतवार किसी समय एक ही नगर के भाग थे तथा ये बारह कोस के विस्तार में फैले हुये थे । कनिंघम ने कुतवार को अत्यन्त प्राचीन नगर माना है । इससे इस सम्भावना को और भी बल मिलता है कि वर्तमान कुतवार का ही नाम कान्तिपुरी रहा होगा। स्थान निर्धारण के सम्बन्ध में जैसा विवाद कान्तिपुरी के सम्बन्ध में उपस्थित हो गया था वैसा ही विवाद पद्मावती के सम्बन्ध में बना रहा । श्री विल्सन ने सर्वप्रथम पद्मावती को १. कनिंघम की सर्वेक्षण रिपोर्ट-खंड २, पृष्ठ ३०३ । For Private and Personal Use Only

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