Book Title: Padmapuran Part 2
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 8
________________ पद्मपुराण परजनक मिथिला में वापिस आये । मिथिलामें स्वयंवर हुआ और रामने धनुष चढ़ाकर ताकी रत्नमाला प्राप्त की । लक्ष्मणने भी दूसरा धनुष चढ़ाकर अठारह कन्याएँ प्राप्त कीं । भरतका राजा जनकके भाई कनककी पुत्री लोक-सुन्दरीके साथ विवाह हुआ । तीसवाँ पर्व सुप्रभाने इसे अपना पाटाका राजा दशरथने भगवान्का अभिषेक कर गन्धोदक, सब रानियोंके पास भेजा । सुप्रभा रानीके पास एक वृद्ध कञ्चुकी ले गया इसलिए वह देरसे पहुँचा । अन्य रानियोंके पास तरुण दासियाँ ले गई थीं इसलिए जल्दी पहुँच गया। अपमान समझ प्राणघात करनेके लिए विष मँगाया । कञ्चुकी विष लेकर सुप्रभा के पास पहुँचा ही था कि उसी समय राजा दशरथ उसके पास पहुँच गये । राजा तथा अन्य रानियाँ जब तक उसे समझाती हैं तब तक वृद्ध कञ्चुकी गन्धोदक लेकर आ पहुँचा । प्रसन्न होकर सुप्रभाने गन्धोदक शिर पर धारण किया । राजा दशरथने कञ्चुकीसे विलम्ब का कारण पूछा तो उसने अपनी वृद्ध अवस्थाको ही उसका कारण बतलाया । उसकी जर्जर अवस्था देख राजाको वैराग्य उत्पन्न हो आया। उसी समय अयोध्या के महेन्द्रोदय उद्यान में सर्वभूतहित नामक मुनिराजका आगमन हुआ । तीसवाँ पर्व विद्याधरोंने यथार्थ बात भामण्डलसे छिपा रक्खी थी इसलिए वह सीताके मिलने में विलम्ब देख विह्वल हो उठा । निदान, एक दिन लज्जा छोड़ उसने पिताके समक्ष ही अपसे मित्र वसन्तध्वजको उपालम्भ दिया । तत्र विद्याधरोंने सब बात स्पष्ट कर दी । भामण्डल उत्तेजित हो उठा और सीताहरणकी भावनासे सेना लेकर अयोध्याकी ओर चला । विदग्ध नामक देश के मनोहर नगर पर जब उसकी दृष्टि पड़ी तब उसे पूर्वभवका स्मरण हो आया जिससे मूच्छित हो गया । सचेत होनेपर अपने कुविचारों के प्रति उसे बहुत घृणा हुई। उसने चन्द्रयान विद्याधरको बताया कि मैं पूर्वभवमें यहाँका राजा कुण्डलमण्डित था । धर्म के प्रभावसे राजा जनकका पुत्र हुआ । उत्पन्न होते ही मेरा हरण हुआ । और आपके यहाँ पलकर 1 मैं पुष्ट हुआ। जिस सीताके व्यामोहसे मैं उन्मत्त हो रहा था वह तो मेरी सगी बहन है । अन्तमें भामण्डल सत्र लोगों के साथ अयोध्या के महेन्द्रोदय उद्यानमें स्थित सर्वभूतहित मुनिराज के पास जाता है । चन्द्रयान विद्याधर दीक्षा लेनेका भाव प्रकट करता है । भामण्डलका विरदगान होता है जिसे सुनकर सीता जागती है । सर्वभूतहित मुनि के पास सबका मिलन होता है । सीता अपने भाई से मिलती है । दशरथ राजा जनकको खबर देते हैं । राजा जनक सपरिवार आकर अपने जन्महृत पुत्रसे मिलकर परम आनन्दका अनुभव करते हैं । राजा जनक अपना राज्य अपने भाई कनकको सौंपकर भामण्डल के साथ विजयार्ध चले जाते हैं । इकतीसवाँ पर्व सर्वभूतहित मुनिराज द्वारा दशरथके पूर्व भवोंका वर्णन । पूर्वभवों का वर्णन सुन राजा दशरथका विरक्त हृदय और भी अधिक विरक्त हो जाता है । वे मन्त्रियोंके समक्ष अपना अहार्य निश्चय प्रकट कर रामके राज्याभिषेककी घोषणा करते हैं । समय पाकर भरतकी माँ केकया, अपना पूर्वस्वीकृत वर माँगकर भरत के लिए राज्य माँगती है । राजा दशरथ असमञ्जसमें पड़ जाते हैं । रामके समक्ष वे अपनी इस दुरवस्थाको प्रकट Jain Education International For Private & Personal Use Only ३०-४४ ४५-४७ ४७-४८ ४८-५३ ५४-६६ ६५-७२ www.jainelibrary.org

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