Book Title: Padmapuran Part 2
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 7
________________ विषयानुक्रमणिका छब्बीसवाँ पर्व पृष्ठ १--१० ११-१२ १३-१४ विषय राजा जनककी रानी विदेहाके गर्भमें स्थित सीता और भामण्डलके पूर्वभवोंका वर्णन । सीता चित्तोत्सवा थी और भामण्डल कुण्डलमण्डित । कुण्डलमण्डितने चित्तोत्सवाका हरण किया था जिससे उसका पति पिङ्गल बहुत दुखी होता हुअा मरकर महाकाल नामका असुर हुया । पूर्व वैरके कारण वह कुण्डलमण्डितको नष्ट करने के प्रयत्नमें तत्पर रहने लगा। रानी विदेहाके गर्भसे एक साथ पुत्र और पुत्रीका जन्म हुया। महाकाल अमुर अवधिज्ञानसे पुत्रको अपनो स्त्रीका हरण करनेवाला--कुण्डलमण्डित जानकर रोषसे उबल पड़ा और उत्पन्न होते ही उसने उसका अपहरण कर पश्चात् दयासे द्रवीभूत हो उसे अाकाशसे नीचे गिरा दिया । साथ ही उसे दिव्य कुण्डलोंसे अलंकृत भी कर दिया । चन्द्रगति विद्याधरने आकाशसे पड़ते हुए पुत्रको झेला और अपनी अपुत्रवती पुष्पवती रानीको सौंप दिया । पुत्र जन्मका उत्सव मनाया गया और पुत्रका भामण्डल नाम रक्खा गया । पुत्रापहरणके कारण राजा जनककी रानी विदेहाका करुण विलाप और राजा जनकके द्वारा सान्त्वनाका वर्णन । सीता-पुत्रीका बाल्यकाल तथा सौन्दर्यका वर्णन । सत्ताईसवाँ पर्व म्लेच्छ राजाओंके द्वारा राजा जनकके देश में उपद्रव होना। सहायता के लिए राजा जनकका दशरथको बुलाना । दशरथका तत्काल वहाँ जाना और म्लेच्छोंको परास्त करना । दशरथके इस अभतपूर्व सहयोगसे प्रसन्न होकर राजा जनकका, दशरथ के पुत्र रामके लिए अपनी पुत्री सीताके देनेका निश्चय करना । अट्ठाईसवाँ पर्व नारद सीताके महल में पहुँचे। सीता उस समय दर्पणमें मुख देख रही थी। नारदकी प्रतिकृति दर्पणमें देख सीता भयभीत हो उठी। नारद और अन्तःपुरकी स्त्रियों के बीच होहल्ला सुन द्वारपालोंने उसे रोकना चाहा। पर नारद जिस किसी तरह बचकर ग्राकाशमागसे उड़ कैलास पर्वत पर गथे। वहाँ सीतासे बदला लेनेका विचार कर उसका चित्रपट बनाते हैं और उसे ले जाकर विजयाध पर्वत पर स्थित रथनूपुर नगर के राजाके उद्यानमें छोड़ दिये है। चित्रपटको देखकर भामण्डल उस पर मोहित हो उठता है। नारदने चित्रपटका परिचय दिया जिससे भामण्डलका व्यामोह बढ़ता गया। राजा चन्द्रगतिकी संमतिसे चपलवेग नामका विद्याधर अश्वका रूप रख मिथिलासे राजा जनकको हरकर रथनू पुर नगर ले गया । राजा जनक वहाँका वैभव देखकर प्रसन्न हुया। विद्याधरोंने राजा जनकके सामने भामण्डल के लिए सीता देनेका प्रस्ताव किया परन्तु राजा जनकने दृढ़ताके साथ उत्तर दिया कि मैं दशरथके पुत्र रामके लिए पहलेसे देना निश्चित कर चुका हूँ। विद्याधरों द्वारा भूमिगोचरियोंको निन्दा सुन राजा जनकने करारा उत्तर दिया। अन्तमें 'यदि राम वज्रावर्त धनुष चढ़ा देंगे तो सीता ले सकेंगे अन्यथा भामण्डल लेगा' इस शर्ते १५-२२ २३-३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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