________________
( २१ )
(२) यद्यपि राजशेखर ने श्रीहर्ष की जन्मभूमि काशी मानी है, पर श्रीहर्ष के वंशज हरिहर को 'हरिहरप्रबंध' में उन्होंने गौडदेशवासी बताया है । मैथिलकोकिल विद्यापति के अनुसार 'नलचरित' नामक काव्य के कर्ता कवि पण्डित श्रीहर्ष गौडदेश में हुए थे। ये 'नलचरित' की रचना करके काशी चले गये-'बभूव गोडविषये श्रीहर्षो नाम कविपण्डितः, स च नलचरिताभिधानं काव्यं कृत्वा वाराणसी जगाम ।'
(३) भाषात्मक समानता और उच्चारण में बंगालीपन के आधार पर भी श्रीहर्ष को बंगाली माना गया है । डा० नीलकमल भट्टाचार्य ने इन्हीं के आधार पर श्रीहर्ष को बंगाली सिद्ध करने का प्रयास किया है। 'नषध' में अनेक बंगाल और बँगला भाषा से संबद्ध शब्द ढूढ निकाले गये हैं; उदाहरणार्थ-'फाल' (द्विफालबद्धाश्चिकुराः १११६ )-प्रो० हॉडिकी इस शब्द को 'असमी' भाषा का बताते हैं। निकटस्थ बंगाल से इसका संबंध सहज है । 'आलेपन' ( क्वचित्तदालेपनदानपण्डिता। १५।१२ )-इस शब्द का अर्थ 'प्रकाश' और 'जीवातु'–टीकाओं में 'हरिद्राचूर्ण मिश्रित तण्डुलपिष्ट' किया गया है, जिसका प्रयोग 'चतुष्क-निर्माणार्थ ( चौकपूरने के निमित्त) किया जाता था, यही बंगला का 'अलपना' है। 'डिम्ब' ( लसड्डिम्बमिवेन्दुबिम्बम् २२।५१ (जीवातु), ५३ (प्रकाश)—इसका अर्थ है 'बालक्रीडा साधनभ्रमरक' ( लाटू, लटू )। बंगला में यही 'लाटिम' कहाता है। लालडिम्बलाडिम्ब-लाटिन । इसी प्रकार कई अन्य शब्द और श, ष, स; ण, न; ब, व; य, ज, आदि वर्गों का शब्दालंकारों में एक समान उच्चारण के आधार पर उपयोग देखकर ('मंगला' में उक्त वर्गों में उच्चारण-भेद नहीं होता ) डॉ० भट्टाचार्य ने श्रीहर्ष को बंगाली माना है ।
( ४ ) बंगाल की कुछ 'व्यवहार-परंपराओं, रीत-रवाजों' का साम्य भी 'नेपघ' में खोज निकाला गया है। दमयन्ती स्वयंवर प्रसंग ( आननेभ्यः पुरसुन्दरीणामुच्चरुललुध्वनिरुच्चचार १४१५१ ) में 'उलूलु' ध्वनि बंगाली परंपरा है। नारायणपण्डित ने 'प्रकाश' टीका में ऐसा ही माना है"विवहोत्सवे स्त्रीणां धवलादिमङ्गलगीतिविशेषो गौडदेशे 'उलूलुः' इत्युच्यते।' यद्यपि मल्लिनाथ (१४॥४९) इसे 'उदीच्यानामुच्चारः' मानते हैं, तथापि