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कैसी भयंकर पराधीनता! पराधीनता में सुख है ही नहीं!
सुख स्वाधीनता में ही है। जब तक यह सत्य समझ में नहीं आ जाता, तब तक 'कूपमण्डूक' को सागर की विशालता का ज्ञान हो ही नहीं सकता। उसकी दशा हुक्का पीने में ही जीवन का परम सुख समझने वाले उस गाय चराने वाले रबारी के समान ही रहेगी। वहाँ हुक्का पीने को मिलेगा?
पंड़ित ने गाय चराने वाले रबारी को धर्मोपदेश देना प्रारम्भ किया। तब रबारी ने पूछा, "धर्म से क्या प्राप्त होगा?"
पंड़ित ने उत्तर दिया,"धर्म से मोक्ष की प्राप्ति होगी।" गाय चराने वाले रबारी ने पछा, "मोक्ष कैसा होता है?"
पंड़ित ने उत्तर दिया, "मोक्ष में अपार आनन्द होता है, बस-आनन्द ही आनन्द। केवल आनन्द, आनन्द और आनन्द, वहाँ दुःख का तो नाम मात्र तक नहीं होता। धर्म से इस प्रकार की मोक्ष प्राप्त होता है।"
तब गाय चराने वाले रबारी ने कहा, "आनन्द की बात तो ठीक है, परन्तु यह बताओ कि आपके मोक्ष में हुक्का पीने को मिलेगा?"
पंडित ने कहा, "नहीं, वहाँ हुक्का तो नहीं मिलेगा।"
गाय चराने वाले रबारी ने उत्तर दिया, "तब तो आग लगाओ आपके मोक्ष को ... जहाँ हुक्का पीने को भी नहीं मिले, ऐसे मोक्ष में भला आनन्द कैसे हो सकता है?"
गाय चराने वाले रबारी के मन से हुक्का पीने की अपेक्षा अधिक आनन्द हो सकता है - यह बात उसके गले उतरने वाली नहीं है।"
प्राय: हम जैसे समस्त संसार-रसिक जीवों की ऐसी ही करूण दशा है। गाय चराने वाले रबारी को हुक्का पीने में ही आनन्द की अनुभूति होती है। बिल्ली को यदि चूहे खाने को मिल जायें तो वह स्वयं को सुखी मानती है।
आपको यदि किसी फिल्मी-अभिनेता से हाथ मिलाने का अवसर प्राप्त हो जाये तो आप अपने आप को महान भाग्यशाली समझते हैं।
रात्रि में बारह बजे मार्ग में 'पाव भाजी' एवं 'भेलपुरी' खाने में ... अनाहारी ... पद जिसका स्वभाव है वह हमारी आत्मा ...आनन्द का अनुभव करती है। हाय! करूणता!
पाँचों इन्द्रियों के विषयों से सदा के लिये पर होकर परमात्म पद प्राप्त करने की पात्र हमारी आत्मा ... उन्हीं पाँच इन्द्रियों के विषयों की विष्टा में शयन करने... उसे ही चाटने एवं उसे ही खाने में
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