Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 11
________________ GOGRSSCR090989096 होता जायेगा, जैसे खुजली के रोगी को खाज खुजलने में आनन्द आता है? जब वह नाखून से अथवा किसी तीक्ष्ण वस्तु से खाज खुजलता है तब उस समय का आनन्द कैसा अवर्णनीय प्रतीत होता है? क्या वह वास्तविक आनन्द है अथवा आनन्द का आभास मात्र है, आनन्द प्राप्त होने का मिथ्या भ्रम मात्र है? यदि खाज करने में सच्चा आनन्द हो तो खाज शान्त होने पर भी आनन्दानुभूति होती ही रहनी चाहिये, परन्तु उल्टा खाज करने के पश्चात् उस अंग पर जलन की तीव्र वेदना होती है, खुजली का रोगी जलन-जलन की तीव्र चीख पुकार करता है, उसकी वेदना असह्य होती है। वेदना की उस असह्य पीड़ा के समक्ष खुजली करने के समय की आनन्द की काल्पनिक अनुभूति अग्नि के समीप रखे हुए बर्फ की तरह पिघलकर विलीन हो जाती है। सांसारिक सुखों की वासना की खाज बिल्कुल इसी प्रकार की है, फिर चाहे वह सुन्दर स्पर्श करने की हो, काम-वासना के उपभोग की हो, जीभ से समधुर एवं स्वादिष्ट भोजन का आस्वादन करने की हो, नाक से सुगन्धित सैन्ट इत्र सूंघने की अथवा नेत्रों से सौन्दर्य-दर्शन की हो, अथवा कर्ण प्रिय मधुर फिल्मी गीत श्रवण करने की हो। पाँचों इन्द्रियों के उत्तम पदार्थों को उपभोग करने की लालसा 'वासना' ही है। "वासना' शब्द का व्यापक अर्थ वर्तमान सामान्य समाज स्पर्शेन्द्रिय के विषय-सुख का उपभोग ही समझता है, परन्तु वह स्थूल अर्थ है। सूक्ष्म अर्थ है पाँचों इन्द्रियों के इच्छित पदार्थों के उपभोग की लगन ही वासना है और वासना ही खाज है, जिसे आप ज्यों ज्यों खुजलाते जाओगे, उसका उपभोग करते जाओगे, आनन्द लेते जाओगे, त्यों त्यों वह अधिकाधिक भड़कती जायेगी, भभकती जायेगी और उसकी आग तीव्रतम होती जायेगी। अग्नि में ईंधन डालने से अग्नि में वृद्धि होगी अथवा कमीहोगी? निश्चित रूप से उसमें वृद्धि होगी, ईंधन डालने से अग्नि घटने की तो बात ही नहीं है। अग्निशान्त करने काएक ही उपाय है पानी। विषय-वासना की अग्नि में आप भोग-विलास रूपी ईंधन यदि डालते ही जाओगे तो वह अग्नि भड़क उठेगी। अत: आप विषय-वासना की अग्नि में भोग-विलास रूपी पेट्रोल डालने का कार्य कदापि मत करना। उस पर तो पानी ही डाला जाता है और उसे बुझाने वाला पानी है - जिनेश्वर परमात्मा की उपासना। उपासना के अनेक प्रकार है1.जिनेश्वर भगवान द्वारा प्ररूपित सर्वविरति धर्म के सम्पूर्ण आज्ञापालन का स्वीकार। 2. सर्वविरति धर्म को ही मानव जीवन का चरम लक्ष्य मान कर हृदय से स्वीकार कर, उसके यथा संभव अल्पांश-देशविरति धर्म का पालन। 3. उक्त सर्वविरति एवं देशविरति के सुमार्ग तक पहुँचने के लिये आवश्यक गुणों का पालन ही मार्गानुसारी के पैंतीस गुण हैं। RRCere 2090900

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