Book Title: Mahopnishad
Author(s): Vijaykalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 27
________________ महोपनिषद् | अध्यात्मदर्शना 酱酱酱酱酱酱酱酱酱慧萬萬萬萬萬萬萬萬 क्षणमायाति पातालं, क्षणं याति नभस्तलम् / क्षणं भ्रमति दिक्कुञ्जे, तृष्णा हृत्पद्मषट्पदी // 3-24 // सर्वसंसारदुःखानां, तृष्णैका दीर्घदुःखदा / अन्तःपुरस्थमपि या, योजयत्यतिसङ्कटे // 3-25 // तथाहि हृदयनगरान्तर्वतिनमपि शरीरान्तर्व्यवस्थितं वाऽऽत्मानं पातयत्येव प्राणसंशयेऽपि सङ्कटे तृष्णा, तत्प्रेरितस्यावारपारापरपारगमनाद्यतिसाहससाध्ये मृत्युभयेऽनुष्ठाने प्रसह्य प्रवृत्तेः / किं तहि कर्तव्यं तदपाकरणार्थमित्यत्राह - तृष्णाविषूचिकामन्त्र-श्चिन्तात्यागो हि स द्विजः / / स्तोकेनानन्दमायाति, स्तोकेनायाति खेदताम् // 3-26 // चिन्तावशवर्तितयैव जीवः स्तोकेनापि धनलाभादिना निमित्तेनानन्दमायाति / अल्पवर्षयाऽपि क्षुद्रनदी यथोत्सेकं भजते, क्षुद्रत्वादेव, एवमल्पमपि मनसा शुभत्वेनाभिगृहीतं निमित्तं तदुत्सेकहेतुतां गच्छति, स्तोकेन च कष्टेन तत्त्वेनाभिमतेन खेदभावं चोपयाति, अतश्चिन्ताऽपासन एव यतितव्यम्, तज्जीवनत्वात्तृष्णाया भवस्य च, तदाह - यावच्चिन्ताऽस्ति जन्तूनां तावद् भवति संसृतिः / यथेन्धनसनाथस्य स्वाहानाथस्य वर्धनम् - इति / अथ देहरागलक्षणं 0000000000000000003

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