Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ अनंतशः उपकारी माता-पिता मेरे इस शोधग्रंथ की प्रमुख आधारशीला मेरे संसारपक्षीय माता-पिता है / जिन्हनो मुझे जन्म से ही व्यवहारिक अभ्यास के साथ साथ धार्मिक अभ्यास मे पीछे न रहे उसका विशेष ध्यान रखा है / प्रतिदिन कहते थे कि... ज्ञान व्यक्ति की पांख हे। ज्ञान व्यक्ति का विश्राम है / ज्ञान प्राप्त करने से व्यक्ति महान बनता है। इस तरह से संस्कार प्रतिदिन दिया करते थे / संयम जीवन ग्रहण करने के बाद भी जब मिलने आते तब यही कहते थे गुरु आज्ञा, वैयावच्च एवं ज्ञान प्राप्ति मे पीछे कदम मत उठाना | उनकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद ही इस शोधग्रन्थ की सफलता की सीढी है / एसे उपकारी माता-पिता के ऋण को हम कैसे चुका पायेंगे...? “मिले जो मुझने रसना एक करोड वर्णवी शकु ना विश्व मां माता तमारा कोड दिवो लईने शोधता ना मले जननी जोड है उपकारी माता ना शीद जाय उथाम्या बोल" लाख काशी, लाख गंगा, लाख गीता गाय छे लाख देवो, लाख दानव, शास्त्रोनुं ज्यां माप छे लाख गोकुल लाख मथुरा प्रभुनी ज्यां छाप छे सब से श्रेष्ठ हो तो आप के माता - पिता है / इन के साथ साथ भाईभाभी, बहुन-बहनोई सब की एक ही इच्छा थी कि आप कैसे भी करके PH.D. पूर्ण करो हम आप को तन, मन, एवं धन से साथ-सहकार एवं सहयोग देने के लिए तैयार है | अतः इस समय उनको भी याद करना मेरा कर्तव्य, फर्ज है। साध्वी अमृतरसाश्रीजी म. उपकारी माता-पिता Jain Education Intemational For Personal Private Use Only www.jaineitrary.org