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समय और मृत्यु का अंतर्बोध
हम ऐसे जीते हैं कि न कोई पहरे पर चोर मौजूद हैं। हम गड्डा बन जाते हैं, वे
न घर का दीया जला है, अंधकार है घना, चोरों के लिए निमंत्रण है, और चारों तरफ हमारे हममें बह जाते हैं भीतर।
खयाल करें, एक उदास आदमी आकर आपके घर बैठ जाता है। कभी आपने खयाल किया है, थोड़ी देर में आप भी उदास हो जाते हैं! एक हंसता हुआ, मुस्कुराता हुआ आदमी आपके घर में आ जाता है। कभी आपने खयाल किया, आप भी मुस्कुराने लगते हैं, प्रसन्न हो जाते हैं। छोटे बच्चों को देखकर आपको इतना अच्छा क्यों लगता है? छोटे बच्चे उसका कारण नहीं हैं। छोटे बच्चे प्रसन्न हैं। उनकी प्रसन्नता संक्रामक हो जाती है। वे नाच रहे हैं, कूद रहे हैं, संसार का उन्हें अभी कोई पता नहीं, मुसीबतों का उन्हें अभी कोई बोध नहीं । अभी वे नये-नये खिले फूलों जैसे हैं। न उन्होंने तूफान देखे, न आंधियां देखीं, न अभी सूरज की तपती हुई आग देखी, अभी उन्हें कुछ भी पता नहीं ।
उनको देखकर आप भी प्रसन्न हो जाते हैं। छोटे बच्चों के बीच भी अगर कोई उदास बैठा रहे तो समझो कि साधु... । मतलब यह कि उसे बहुत चेष्टा करके उदास रहना पड़े, वह बीमार है, पैथोलाजिकल है, रुग्ण है। छोटे बच्चों के बीच तो कोई प्रसन्न हो ही जायेगा ।
नेहरू को छोटे बच्चों से बहुत लगाव था। उसका कारण, छोटे बच्चे नहीं थे, राजनीति की बीमारी थी। बच्चों में जाकर वे दुष्टों को भूल पाते थे, जिनसे घिरे थे, जिनके बीच थे, जिस उपद्रव में पड़े थे। वह बच्चों के बीच जाकर हल्का हो जाता था मन । जैसे कि कोई हाली-डे पर पहाड़ चला गया, छुट्टी मना ली। छोटे बच्चों के बीच उनका होना इस बात का सूचक था कि नेहरू मन से राजनीतिज्ञ नहीं थे, इसलिए छोटे बच्चों की तलाश थी, ताकि इन आदमियों से बचें जो उनको घेरे
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नेहरू कम से कम राजनीतिज्ञ आदमी थे, नियति उनकी वह नहीं थी । नियति तो थी कि वह कवि होते। हिंदुस्तान ने एक बड़ा कवि खो दिया, और एक कमजोर राजनीतिज्ञ पाया। वे हो नहीं सकते थे। कोई उपाय नहीं था। उनके लिए कोई वहां गति नहीं थी । इसलिए बचाव करते थे, बच्चों के साथ ही खेलते थे और प्रसन्न हो जाते थे। जैसे वहां उनको निकटता मालूम होती थी, सानिध्य मालूम होता था । जहां भी आप हैं, आप प्रभावित हो रहे हैं। कैसे लोगों के बीच आप हैं, आप वैसे हो जायेंगे।
तो महावीर कहते हैं, 'किसी का विश्वास मत करना।' इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई और हंसता है और आपको हंसी आ जाती है तो समझना कि आपकी हंसी झूठी है। कोई और रोता है और आपको रोना आ जाता है, तो समझना कि रोना झूठा है। न यह हंसी आपकी है, न यह रोना आपका है। यह सब उधार है।
और हम सब उधारी में जीते हैं, हम बिलकुल उधारी में जीते हैं। एक फिल्म में आप देख लेते हैं कोई करुण दृश्य और आपकी आंखों में आंसू बहने लगते हैं। ये उधार हैं। कुछ भी तो वहां नहीं हो रहा है। पर्दे पर केवल धूप-छाया का खेल है, मगर आप रोने लगे। वह बता रहा है कि आप किस भांति बाहर से संक्रामित होते हैं। फिर थोड़ी देर में आप हंसने लगेंगे। आपकी हंसी भी बाहर से खींची जाती है और आपका रोना भी बाहर से खींचा जाता है। आपकी अपनी कोई आत्मा है? जिसका सब कुछ बाहर से संचालित हो रहा है, उसके पास कोई आत्मा नहीं है।
महावीर कहते हैं, 'जागरूक रहना, किसी का विश्वास मत करना।' इसका मतलब यह है कि किसी को भी इस भांति मत स्वीकार करना कि वहां तुम्हें असावधान रहने की सुविधा मिले। तुम मानकर चलना कि तुम एक अजनबी देश में हो, अजनबी लोगों के बीच, एक आउट साइडर हो, जहां कोई तुम्हारा अपना नहीं, जहां सब पराये हैं। सब अपने-अपने हैं, कोई किसी दूसरे का नहीं है ।
लेकिन हम सब धोखा देते हैं। पत्नी कहती कि मैं आपकी। पति कहता, कि मैं तुम्हारा। बाप कहता है बेटे से, कि मैं तुम्हारा | बेटा कहता, मां से, कि मैं तुम्हारा । सब अपने-अपने हैं। कोई यहां किसी का नहीं है। चारों तरफ हम इसे रोज देखते हैं, फिर भी एक-दूसरे
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