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समय और मृत्यु का अंतर्बोध
है। तब तक वह कितना ही समझे कि मैं अलग हूं, वह अलग है नहीं। ___ इसलिए बड़ी मजे की घटनाएं घटती हैं। दुनिया में बड़े पाप व्यक्ति से नहीं होते, भीड़ से होते हैं। क्योंकि भीड़ में संक्रमण हो जाता है। हजार लोगों की भीड़ मंदिर को जला रही है या मस्जिद में आग लगा रही है। इनमें से एक-एक आदमी को अलग करके पूछे कि मस्जिद में आग लगाना चाहते हो? मंदिर तोड़ना चाहते हो? क्या होगा? एक-एक आदमी को अलग पूछे, वह कहेगा, नहीं, इससे कुछ होने वाला नहीं है, इसमें कोई सार भी नहीं है। फिर क्या कर रहे थे?
लेकिन हजार आदमियों की भीड़ में वह आदमी था ही नहीं, वह सिर्फ भीड़ का एक हिस्सा था । इसलिए बड़ा पाप भीड़ करती है। छोटे पाप निजी होते हैं । बड़े पाप सामूहिक होते हैं। जितना बड़ा पाप करना हो, उतनी बड़ी भीड़ चाहिए। क्योंकि भीड़ में व्यक्ति को जो निज की जिम्मेदारी है वह खो जाती है। भीड़ में व्यक्ति अपने में नहीं रह जाता। भीड़ में उसे लगता है, एक सागर है जिसमें बहे चले
जा रहे हैं । भीड़ में उसे ऐसा नहीं लगता है कि मैं कर रहा हूं, भीड़ कर रही है, मैं सिर्फ साथ हूं। ___ कभी आपने खयाल किया, अगर भीड़ तेजी से चल रही हो, आपके पैर भी तेज हो जाते हैं । हिटलर ने अपने सैनिकों को आदेश दे रखे थे कि जब भी तुम चलो तो एक दूसरे के शरीर छूते रहें । अगर पचास आदमी चल रहे हों, और एक दूसरे के शरीर छूते हैं और
ड़ते हैं, तो आप उस लय में फंस जायेंगे । जब उनका हाथ आपको छयेगा तो उनका जोश भी आपके भीतर चला जायेगा। और जब उनके कदम की चाप आपके सिर में पड़ेगी तो आपका कदम भी वैसा ही पड़ने लगेगा। पचास आदमियों की भीड़ में आप अकेले नहीं रह जाते, आप सिर्फ एक अंग हो जाते हैं, एक बड़ी चेतना का हिस्सा हो जाते हैं । और वह चेतना फिर आपको प्रवाहित कर लेती है । जैसे नदी की धार में कोई बहता हो और जब नदी वर्षा के पूर में आयी हो जब कोई बहता हो, वैसा असहाय आदमी हो जाता है भीड़ में।
इसलिए सारे लोग भीड़ बनाकर जीते हैं । राष्ट्र भीड़ों के नाम हैं। धर्म भीड़ों के नाम हैं- हिंदुओं की भीड़, मुसलमानों की भीड़, जैनों की भीड़, हिंदुस्तान, पाकिस्तान, चीन, रूस-ये सब भीड़ों के नाम हैं।
रूस खतरे में है. तो फिर सारा मामला खत्म हो गया। भारत खतरे में है. तो फिर आप व्यक्ति नहीं रह जाते । सिर्फ एक बडी भीड के हिस्से रह जाते हैं। फिर उसमें आप बहते हैं।
राजनीति भीड़ों को संचालित करने की कला है। इसलिए जहां भी भीड है वहां राजनीति होगी। चाहे वह धर्म की भीड क्यों न हो राजनीति आ जायेगी। इसलिए मैं आपसे कहता हूं, धर्म का संबंध है व्यक्ति से और राजनीति का संबंध है भीड़ से । जहां धर्म भी भीड़ से संबंधित होता है वहां राजनीति का रूप है। इसलिए हिंदुओं की भीड़, मुसलमानों की भीड़, ईसाइयों की भीड़ , ये सब राजनीति के रूप हैं, इनका धर्म से कोई संबंध नहीं है। धर्म का संबंध है व्यक्ति से। धर्म की चेष्टा ही यही है कि व्यक्ति को हम भीड से कैसे मक्त करें, वह भीड़ के उपद्रव से कैसे बाहर आये, भीड़ के प्रभाव से कैसे छूटे, यही तो धर्म की सारी चेष्टा है। लेकिन धर्म भी भीड़ बन जाता है, और धर्म भीड़ बन जाता है तो उससे मुश्किल हो जाती है, कठिनाई खड़ी होती है। युद्ध में सैनिक ही भीड़ में नहीं लड़ते, लोग मस्जिदों में, मंदिरों में, भीड़ में प्रार्थना भी करते हैं । बह जायेंगे आप । बह जाना निद्रा में भी हो जायेगा, महावीर कहते हैं।
इसलिए जागे हुए व्यक्ति को आसपास पूरे वक्त सचेत रहना पड़ेगा। सब तरफ से नींद आ रही है, सब तरफ सोये हुए लोग हैं । क्रोध आयेगा, लोभ आयेगा, मोह आयेगा, सब तरफ से बह रहा है, जैसे कि कोई आदमी सब तरफ से गंदी नालियां बह रही हों और उनके बीच में बैठा हो। उसको बहुत सचेत रहना पड़ेगा अन्यथा वे गंदी नालियां उसे भी गंदा कर देंगी। उसकी सचेतना ही उसको पवित्र रख सकती है। इसलिए महावीर कहते हैं, सब तरह से जागरूक रहना चाहिए, सब तरह से। इसलिए बहुत अदभुत वचन उन्होंने कहा है।
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