Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 15
________________ Xvi महाकवि भूधरदास : भूधरदास का व्यक्तित्व अनेक गुणों से विभूषित था। वे कवि, अध्यात्मरसिक, प्रवचनकार, समाधानकर्ता, निराभिमानी, विनम्र, मिष्टभाषी, पक्षपातविरोधी, खोजी एवं जिज्ञासु, विचारशील, धैर्यशील, भाग्यवादी, धार्मिक नैतिक एवं सदाचारी, विरक्त, आत्मोन्मुखी, भक्त एवं गुणानुरागी, हिंसा एवं वैर के विरोधी, सामाजिक बुराईयों व दुर्बलताओं के कट्टर विरोधी तथा रीतिकालीन कवियों द्वारा की गई श्रृंगारपरक रचनाओं के आलोचक के रूप में दृष्टिगत होते चतुर्थ अध्याय में सपनाओं का वर्गीकरण गहा गैर पा के रूप में करते हुए एकमात्र गद्यकृति “चर्चासमाधान" का विस्तृत विवेचन किया गया है। पद्य के अन्तर्गत महाकाव्य “पार्श्वपुराण" तथा मुक्तक काव्य के रूप में महाकाव्येतर रचनाएँ जैनशतक एवं पदसंग्रह या भूधरविलास का विवेचन किया गया है। इनके अतिरक्त फुटकर रचनाओं के रूप में विनतियाँ, स्तोत्र, आरतियाँ, अष्टक काव्य, निशि भोजन भुंजन कथा, गीत, तीन चौबीसी की जयमाला, विवाह समय जैन की मंगल भाषा, ढाल, हुक्का पच्चीसी या हुक्का निषेध चौपाई, बधाई, जकड़ी, होली, जिनगुणमुक्तावली, भूपालचतुर्विशतिभाषा, बारह भावना, सोलहकारण भावना, वैराग्यभावना, बाबीस परीषह आदि का नामोल्लेख पूर्वक परिचय दिया गया है। ये समस्त रचनाएँ मुक्तक काव्य में ही समाहित है। पंचम अध्याय के रूप में भूधरदास की रचनाओं का भावपक्षीय अनुशीलन किया गया है । भूधरदास की महाकाव्यात्मक रचना “पार्श्वपुराण" का महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर मूल्यांकन करते हुए कथानक, चरित्र चित्रण, प्रकृति चित्रण, रस निरूपण, उद्देश्य कथन आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है । साथ ही पार्श्वपुराण का महाकाव्यत्व तथा वैशिष्टय बतलाया गया है। महाकाव्येतर रचनाओं में मुख्यत: मुक्तक काव्य के अन्तर्गत समाहित जैनशतक और पदसंग्रह ही हैं । जैनशतक शतक परम्परा की महत्त्वपूर्ण कृति है। उसमें जैनधर्म और उससे सम्बन्धित स्तुति, नीति, उपदेश, वैराग्य आदि का सुन्दर वर्णन है । इसकी भावपक्षीय विशेषताओं का विषय के अनुसार विवेचन किया गया है । पदसंग्रह या भूधरविलास के कई पद जिनदेव, जिनवाणी, जिनगुरु एवं जिनधर्म आदि से सम्बन्धित हैं तथा कई पद आध्यात्मिक भावों से युक्त हैं । इसप्रकार ये समस्त पद स्तुतिपरक या भक्तिपरक, नीतिपरक, अध्यात्मपरक

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