Book Title: Kuvalayamala Part 1
Author(s): Udyotansuri, A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 99
________________ उज्जोयणसूरिविरइया [S] १३१ 1 रुहिर - मास - गंधायडिओ उवरि भम्माणो भारंड-महापक्खी । तं च दट्ठण आउलमाउले परियणे णिक्खतो बाहिं आयास-तले 1 दिट्ठो य तक्खणुक्कत्तिय वहंत रुहिर- णिवहो भारंड-महापक्खिणा, झड त्ति विडिऊण गहिओ । हा-हा-रव-सह-गभिणस्स 3 परियणस्स समुदाइओ पुरओ चिय गयणंगण-हुतं । तओ णिसियासि सामलेणं गयण-मग्गेणं पहाइओ पुव्युत्तर - दिसा- 3 विभावं । तत्थ किं काटमारतो । अविव । पिय खर्ण रुहिरो पद मास पुणो खणं पाणी भेज भट्टिय-विहं णं णं पट्टए मम्मे ॥ 6 एवं च विलुप्पमाणो जाव गओ समुद्दुच्छंगे ताव दिट्ठो अण्गेण भारंड-पक्खिणा । तं च दहूण समुद्राइओ तस्स हुत्तं । सोय पलाइ पत्तो । पलायमाणो य पत्तो पच्छा पहाइएणं महापक्खिणा । तओ संपलगं जुई । गिर- चंचु-पहर-खरहर मुद्र-विचारणेदिय उज्झमाणानं चुको चंचु-पुडालो तो विडिर्ड पत्तो । 1 गिर चंचुपारावत-संजाय-जीय-संदेहो भासासिनो पडतो गणय सीय-पवगेण ॥ विडियो प स ति समुद-जले तो तम्म अहिचिमे दे चिंधु-पहर-परते व समुह कह हिउं पयत्तं । अवि य । 9 ७० 12 जद जह लग्गइ सलिलं तह तह णिमयं उहह अंग दुजण दुच्चयण- बिसं सजण दियएव्य संपतं ॥ 7 । तो इमो सम्म सलिले अणोरपारे तो जले खतो जलयरेहिं जलतरंग-बीई-दयेहिं व गोलिन माणो समुरेणावि मित्त-वह- महापात्र - कलुसिय हियओ इव णिच्छुभंतो पत्तो के पि कूलं । तत्थ य खण- मेत्तं सीयल-समुद्द-पवण- पहओ ईसि 16 समूससि । णिरुवियं च गेर्ण कह-कह विजय के पि लावणं तं च वेरिसं । एला-ग-पायव-कुसुम भरोण मिय-रुद्र संचारं कप्पूर-पूर-पसरंख-बल-मयरंद-गंध ॥ चरण-बाहरेसुं किंणर-विलयाओ राथ गायति साहीण-पिययमाओं विभणिमिडियाओ ॥ कयली-वणेसु जत्थ य समुद्र- मिउ-पवण हल्लिर-दलेसु । वीसंभ-णिमीलच्छा कणय-मया णिच्च संणिहिया ॥ । 18 1 ( १३७) तस्स य काणणस्स विणिग्गएणं बहु-पिक्क-फल-भर- विविह सुरभि - कुसुम - मासल-मयरंद-वाहिणा पवणेण समासासिनो समुहको समुद्र-तटाओ परिभमिउमादत्तो तम्म व काणणे तो करयल- दलिय चंदण-किसलय-रसेण विलित21 मग अंगे । कवाहारो य संकुत्तो पिक-सुरहि-सुबह- साउ-फलेहिं दो व गेण परिभमाणं काणणस्स मज्झ देसे महंतो वड- पारोहो । तत्थ गमो जाय पेच्छ मरगय-मणि- कोमियल गाणाविद-कुसुम- गियर रेहिरं सरय- समए विय बहुल-पभोसे हंगणेच हिऊण चिंतिये अगे 'अहो, एवं फिर सुम्ब सत्सु जहा देवा सग्गे वसंत ता ते सुंदरासुंदर21 विसेस जाणया । अण्णा हमे पसे लोक-सुंदरं परिवण सग्गे शिवसंत' चिंतत उपविट्टोम्मिड-पाव ति । तत्थ निसगेण य देव-नाम- कित्ता-सण्या-विष्णा चितिषमण लोहदेवे 'अहो, अथि को विधम्मो जेण 1 " 1 देवा देव- लोएस परिवसंति दिव्व-संभोग ति । अत्थिय किं पि पावं जेण णरए पेरइया अम्ह दुक्खाओ वि अहियं दुक्ख27 मुव्वर्हति । ता किं पुण मए जीवमाणेण पुण्णं वा पावं वा कथं जेण इमं दुक्खं पत्तो' त्ति चिंतयंतस्स हियए लग्गो सहस ति तिक्ख-सर-सलं पिव भदसेट्ठी । तभ चिंतिउं पयन्तो । 'अहो, J 1) P उवरि कमनाणो भारुंड आयासअले । P तले य 1. 2 ) P तक्खणकत्तिय, P भारंट, J inter. महा and भारंड, उ झस P उझट. 3 ) P गयणांगण, Pom. पहाइओ P दिसाभायं. 5 ) P खणं घोट्टए रुहिरं ॥ 6 ) विलुंपमाणो, P समुद्दुच्छंगो तावदिट्ठो समुद्दुच्छंगे ताव दिट्ठो अनेन भारुंड P सपुट्ठाई तरस 7 ) P संलग्गं, प्पहार 8 ) । कुहर for मुह, P निवडियं. 9 ) P -प्पहारा, उ घुयधरिय for संजाय, P गयणयले सीय, सीयल- 10 ) P om. तओ P हिणवत्तिय, P निद्दयं, P परजेयं, P सलिलं अह दहि ं. 12) P दह, P -हिययं व । 13 ) P अगोरपासे, P पुगो लिज्ज for व गोलिज, P समुत्तिद 14 ) J कलुसिओ इव, P निब्भच्छंतो, P ईसी. 17 P सीहीण, अणुस्त्तुकंठ । अणमि तुकण्ण- 18) P कणे for वणे, कणयमाया- 19 पद 20 P समुद्दिओ P करयलयदलिय P विलित्तनागेणं. (21) कयाभारो, P -प्फलेहिं ।, JP वणेण for य णेण । परिब्भम 22 ) वटयारोहो, P कोमियले नियरेहिरं, P विआ for विय. 23 ) J णेण for अगं, P किर after जहा, P निवसति, inter. ते and . 24 ) P बिस for विसेस, JP परिचरऊण 25 ) णिसुत्रेण, P त्रितयमप्पे, P धमो for धम्मो 26 ) सभोगो, P नारश्या । अहं दुक्खाओ. 27 ) P संपतो for पत्तो, P सहस्स for सहस 28 > चिंतियं for चितिडं. om. पि Pom. अत्ताणयं, P अत्थत्थाणंमि. 31 ) Pom. त्ति, ताओ for तओ, कुमुगयरंद 32 ) Pom. जलहि, तरंगा रंगा', P तरेणं for जडेणं. 33 ) Pom. य, P विभाविज्जतखरन्हुर, Padds ताणयंति before दिनं च Jom.. 30 ) Jain Education International 12 अम्हारिसा किं जीविण पिय-मित्तद्दिण-हाण जेण कयग्येण मए भदो हि समुवणीओ ॥ 30 ता धिरथु मम जीविएणं । ता संपयं किं पि तारिसं करेमि, जेण पिय-मित्त वह कलुसि अत्तायं तित्यत्थाणम्मि वावाएमि, 30 जेण सव्वं सुज्झइति चिंतयंतो णिवण्णो । तओ सुरहि-कुसुम-मयरंद - बहल - परिमलुग्गार वाहिणा ममासासिज्जैतो सिसिरजलहि-ज-तरंग-रंगावली- विविसप्पमान-जल-लब-जणं दाहिं पेय मुले वढ-पायय-तलम्मि खण-मेलस्स 33 य विबुद्धो ईसि विभासितखर-महुर मुहुमेणं सरेण 1 दिष्णं च णेण सविसेसं कृष्णं । For Private & Personal Use Only 15 18 88 www.jainelibrary.org

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