Book Title: Kuvalayamala Part 1
Author(s): Udyotansuri, A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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- १८६ ]
कुवलयमाला
वियत-देह-सोहो परियण- परिवजिओ सुदीण-मणो । पवणाहल य्य दीयो शति ण ओ कहिं पि गओ || तत्तो य चविऊण मणुयाणुपुत्री रज्जू-समायडिओ कत्थ उबवण्णो ।
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१८५ ) इहेव जंबुद्दीवे भारहे वासे दाहिण-मज्झिम-खंडे चंपा नाम गवरी । सा य केरिसा | अवि य, धवल-हर-तुंग-तोरण-कोडि पडाया- फुरंत सोहिल्ला । जण-निवहुद्दाम-रवा णयरी चंपति णामेणं ॥
तीए णयरीए तुलिय-वणवइ-धण-विवो धणदत्तो नाम महासेट्ठी । तस्स य घरे घर-लच्छि ध्च लच्छी णामेण महिला । ती व उपरे पुचा उपयो सो पदमप्यभो देयो गवन्द य मासाणं बहु-परिमाण व राईदिवाणं सुकुमाल - पाणिपाओ तुम्पल-दल-भारओ विय दारओ जाओ । तं च दण कयं वद्वावणयं महासेद्विणा जारिसं पुत्त-लंभस्सुद त्ति । कयं च से णामं गुरूहिं अणेय उवयाइएहिं सागरेण दत्तोति सागरदत्तो । तो पंचधाई-परिवुडो 9 कमेण य जोव्वणं संपत्तो । तो जोदण-पत्तरस य त रूव-घण-विहव- जाइ समायार-सीलाणं वणिय-कुलाणं दारिया सिरि 9 व्रूवेण सिरी णामा उपभोग-सहा युगा दिण्णा गुरुयगेणं । तत्र अगेय-शिद्ध-बंधु-भिच्च परिवारो अच्छिउं पयत्तो को य से कालो उपयो। अवि थ
।
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12 रेति हंस-मंडल-चाल माडिया विसाओ आण्ण-पराओ परियण-बड्याउ व गईभो ॥
रेहति वणे कासा जलम्भि कुमुयाइँ हयले भेहा । सत्तच्छयाइँ रण्णे गामेसु य फुल-णीयाई ॥
एरिसे य सरय-काले मत्त-पमत्ते णच्चिरे जणवए पुण्णमासीए महंते ऊसवे चट्टमागे सो सागरदत्तो सेट्ठिउत्तो गियय-बंधु-गिद्ध15 परियारो णिग्गओ णयरि-कोमुई दहूण | एकम्मि य णयरि-चच्चरे णडेण णच्चिरं पयत्तं । तत्थ इमं पढिर्यं कस्स वि को 15 सुद्धासियं । अनि य
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यो धीमान् पुजः क्षमीबिना चीरः कृतज्ञः कृती, रूपेश्वर्ययुत दयालुरशठो दाता शुचिः सपः । सोगी सीमा तो नीतिमान् बन्धूनां
जन्म सफलं तस्येह चामुत्र च ॥
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चोले सागरदन तिमो सुहारिय-रसेण भणियं तेण 'भो भो भरद-पुत्ता, लिद सारद इमिणा सुहासिएण लक्खे दाय' ति । तो सच्चेहि वि णयरी-रंग-जग णावर एहिं सनियं । 'अहो रसिलो सायरदत्तो, अहो वियो, 21 अहो दाया, अहो चाई, अहो पत्थावी, अहो महासत्तो' ति । एवं पसंसिए जगणं, तभ एक्केण भणियं खल-णायरणं 'सच्चे 21 चाई विडोय जइणियय-दुक्खज्जियं अत्यं दिण्णं, जइ पुण पुग्व-पुरिसज्जियं ता किं एत्थ परदव्वं तस्स | भणियं च । दुइ-सप-समनिषं जो भु-ले सो फिर पल इयरो चोरो विय वराओ ॥"
'जो देइ 24 एवं च गिसामिण समाजेहिं भणियं सन्देहिं द्वि-बंधवेहिं 'सबं सबं संत' ति भणमाणेहिं पुलइयं तस्य वयणं । 1 १८६) सायरो पुण तं च सोकण चिंति समारो। 'अहो, पेच्छ कहं अहं हसिनो इमेहिं । किं जुनं इमाण मम सि ं जे अहवा हि नहि, सुंदरं संलचे जहा 'जो बाहु-बल-समजियं अत्यं देइ सो सप्ताहिओ, जो पुण परकीय देइ सो किं भणड' ति ता सय्यहा ममं च अचार्य णत्थि वर्ण, वा उपहासो चेय आई' ति चिंततरस हियए सह पित्र 27 लग्गं तस्स । भवि य,
J
1 ) " सोभो, P परिवज्जिओ P तोरणुको डिपागा द्दामरया. अबुमा राईदिया सुकु J om. कथं च से etc. to सागर स्तो। राणिय for वणिय, दारियं. 10 12) भूख परिणय for परिय P नयर चच्चरे. 17 ) P कुलज्ञ for कुलज:, Pom. कृतज्ञः, I रूपेश्वर्य, r सत्रपः सद्भागीबोलते, om. तेण P सायरदन्तेण adds च after भणियं, र भरह उत्ता, सायरयत्तं. 20 P सचेहिं नयरि, 21) दाता, P repeats अहो before महासत्तो, 1 जिगाणं for जणेगं, P तओ भणियं एक्केण नायर एणं. मणिअयं । जो. 23) इव for विय. 24 ) P एवं च नियामऊण्ड, P ति for second सच्चे उण, J om. (later struck off), P दूतिओ for हसिओ, P अम्हाणं for इमाण. 26 P परकियं. I adds or before वर्ण, हियसलं. 29 ) वाला, दुबावे. 31 ) J किंपि for किंचि, Jतीय, P दुमाणा विय. 32 ) 1 आगारससंवरणं, न किंचि, P adds आसि before महूसवं
18 ) P तस्य वा चमुत्र.
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थेवं पि खुडइ हिय अवमाणं सुपुरिसाण विमलाण । वायालाहय-रेणु पि पेच्छ अच्छि दुहाबेइ ॥
२० वह बिते महत्यत्तणेण ण पवदियं आगओ घरं, विरइया देखा, उबगल सम्म उपवन व सिरीए अ इंगियायार-कुसलाए जहा किंचि उगो विय क्लीयर एसो पण पसरा य भणिओ ती 'अब्ज तुमं दुम्मणो विय लक्खीयसि' । तेण य आगार-संवरणं करेंतेण भणिय 'ण-इंचि, केवलं सरय-पोण्णिमा -महूसवं पेच्छमाणस्स परिस्समो
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2 ) Pom य, J चरण, P रज्जसमा 3 ) J जंबूद्दीवे, P नगरी, केरिसी. 4 ) 5 ) Pom. महा. Pom. य. 6 ) P तीय उयरे, उवरे, P नवहं मासाणं, P "पुण्णाई m. adds after कर्य, महसेडिणा. 8) पुत टूल, च P पुत्तलंभअए P उववाइएहिं सागरदत्तो त्ति, P पंचधावी. 9 ) तओ for तो अइ for जाइ P जाई, J उपभोगाइ य दिण्णा, Pom. अणेय, P निबद्ध for शिद्ध, P कोलो for को य से कालो. 13 > P फुलिया निंबा ॥ Pom. व सरयकाले etc. to णिग्गओ जयरि.
15) P
19) P सागरदत्तो P ot.] य,
22 ) 25 ) P सागरदत्तो
24
27 ) P किं न भन्नउ, लक्खीयति P लक्खियति,
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