________________
अस्तित्व की खोज : सम्यग्दर्शन
·
ये पांच पड़ाव हैं | जब इन पांच पड़ावों को पार कर जाते हैं, तब छठे पड़ाव में हम वहां पहुंचते हैं जहां हमें पहुंचना है ।
'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें' - यह आत्मदर्शन की बात स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाने की बात है । स्थूल को पकड़े बिना सूक्ष्म को नहीं पकड़ा जा सकता । एक-एक पड़ाव पर भी हमें सूक्ष्मता में जाना होगा । सामान्यतः हम स्थूल संवेदन को ही पकड़ पाते | किन्तु जब मन पटु बन जाता है तब - सूक्ष्म संवेदन भी पकड़ में आ जाते हैं । जब तक मन पटु नहीं बनता तब तक केवल स्थूल संवेदन ही पकड़ में आते हैं । मन जैसे सूक्ष्म होगा, चैतन्य की धारा जैसे तेज होगी, सूक्ष्म संवेदन पकड़ में आते जाएंगे ।
शरीर में हृदय की धड़कन हो रही है, रक्त का संचार हो रहा है, वायु का संचार हो रहा है । शरीर के सारे अवयव सक्रिय हैं । शरीर के समस्त तंत्र में सक्रियता है । शरीर यंत्र चल रहा है, मानो कि कोई विशालतम फैक्टरी चल रही हो । फिर भी मनुष्य को कुछ भी पता नहीं है । वह जान ही नहीं पाता कि कुछ हो रहा है । इसका कारण है वह संवेदनों को पकड़ ही नहीं पाता । बहुत गहरा ध्यान देने पर ही पता लगता है कि शरीर के भीतर कितनी सक्रियता है ! नाड़ी चल रही है रक्त का संचरण हो रहा है, हृदय धड़क रहा है । सूक्ष्म हुए बिना इन सबका पता ही नहीं चलता । हमारा मन भी इतना स्थूल हो गया है कि वह स्थूल को ही पकड़ पाता है, सूक्ष्म को नहीं पकड़ पाता । सूक्ष्म को पकड़ने के लिए मन को सूक्ष्म बनना पड़ता है । साधना का क्रम मन को सूक्ष्म बनाने का क्रम है । मन की यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ती जाएगी, मन सूक्ष्म होता जाएगा और फिर हम सूक्ष्म को पकड़ने में सक्षम हो जाएंगे । जब सूक्ष्म की पकड़ होगी तब स्थूल संवेदन छूटते जाएंगे और सूक्ष्म संवेदन हस्तगत होते जाएंगे ।
६.
मन को देखने से क्या होगा ? यह एक प्रश्न है । मन को देखने का फलित है - संयम । मन को देखने से संयम निष्पन्न होता है । हमने पदचिह्न रहित मार्ग चुना है । उस पर चलने लगे हैं । मन को देखना शुरू किया तो फिर अपने-आप दृष्टि-संयम हो जाएगा । दृष्टि संयत होगी । मन बाहर नहीं जाएगा । वह भटकेगा नहीं । वह एक बिन्दु पर आकर टिक जाएगा । सहज ही संयम हो जाएगा ।
हमारी यात्रा बहुत छोटी है, बड़ी नहीं है । भय न खाएं। कहां से चलना है ? कहां पहुंचना है ? छोटा-सा मार्ग है। यात्रा छोटी और यात्रा -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org