Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kartikeya Swami, Mahendrakumar Patni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 11
________________ पृष्ठ संख्या 1७१ १४६ o Www . ७६ ७७ ७७ [८] गाथा संख्या विषय १४३ ढाई द्वीपके बाहरके तिर्यंचोंकी व्यवस्था हैमवत पर्वतके समान है १४४ जलचर जीवोंके स्थान १४५ भवनवासी व्यंतरोंके स्थान ज्योतिषी, कल्पवासी व नारकियोंके स्थान १४७ तेजवातकायके जीवोंकी संख्या १४८ से १५१ पृथ्वी आदिकी संख्या १५२ सान्तर निरन्तर कथन १५३ से १६० जीवोंका संख्याकी अपेक्षा अल्प बहुत्व कथन १६१ एकेन्द्रियादि जीवोंकी आयु बादर जीवोंकी आयु द्वीन्द्रियादि जीवोंकी आयु सब ही तिर्यंच और मनुष्योंकी जघन्य आयु १६५ देव नारकियोंक १६६ से १६७ एकेन्द्रियादि जीवोंके शरीरकी उत्कृष्ट व जघन्य अवगाहना नारकियोंकी उत्कृष्ट अवगाहना १६६ देवोंकी अवगाहना १७० से १७१ स्वर्गके देवोंकी अवगाहना १७२ भरत ऐरावत क्षेत्रमें कालकी अपेक्षासे मनुष्योंके शरीरकी ऊंचाई १७३ एकेन्द्रिय जीवोंका जघन्य देह १७४ द्वीन्द्रिय आदिकी जघन्य अवगाहना १७५ जघन्य अवगाहनाके धारक द्वीन्द्रिय आदि जीव कौन कौन हैं ? १७६ जीवका लोकप्रमाण और देहप्रमाणपना १७७ से १७८ जीवको सर्वथा सर्वगत माननेका निषेध १७६ जीवको सर्वथा भिन्न मानने में दोष गुण और गुणीके भेद बिना दो नाम होनेका समाधान १८१ से १८२ ज्ञानको पृथ्वी आदिका विकार माननेका निषेध १८३ युक्तिद्वारा जीवका सद्भाव १८४ आत्माका सद्भाव कैसे है ? १८५ जीव देहसे मिला हुआ सब कार्योको करता है ७७ १६८ ७८ m m . . ० ० W १८० 0 mr Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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