Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kartikeya Swami, Mahendrakumar Patni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 9
________________ गाथा संख्या विषय पृष्ठ संख्या २६ HOM mr mr my ७४ से ७९ ८० से ८२ m 20 9 my mr mr 00. m ८५ से ८६ पांच प्रकारके संसारके नाम द्रव्य परिवर्तन क्षेत्र परिवर्तन काल परिवर्तन भव परिवर्तन भाव परिवर्तन यह जीव संसारमें क्यों भ्रमण करता है ? संसारसे छूटनेका उपदेश एकत्वानुप्रेक्षा अन्यत्वानुप्रेक्षा अशुचित्यानुप्रेक्षा देहका स्वरूप देह अन्य सुगंधित वस्तुको भी संयोगसे दुर्गंधित कर देता है अशुचि देहमें अनुराग करना अज्ञान है देहसे विरक्त होनेवालेके अशुचि भावना सफल है आस्रवानुप्रेक्षा आस्रवका स्वरूप मोहके उदय सहित आस्रव हैं पुण्यपापके भेदसे आस्रव दो प्रकारका है मंद तीव्र कषायके दृष्टांत किस जीवके आस्रवका चितवन निष्फल है ? आस्रवानुप्रेक्षा किसके होती है ? संवरानुप्रेक्षा निर्जरानुप्रेक्षा निर्जरा किसके और कैसे होती है ? निर्जरा किसे कहते हैं ? निर्जरा के दो भेद निर्जरा की वृद्धि किससे होती है ? ८७ ४० 0 MM १० ११ से १२ १४ ९५ से १०१ ४४ ४७ GG १०२ १०३ १०४ १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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