Book Title: Kartikeyanupreksha Author(s): Kartikeya Swami, Mahendrakumar Patni Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust View full book textPage 8
________________ गाथा संख्या पृष्ठ संख्या ४ से ७ १० से ११ १२ से १८ १६ से २० २१ से २२ २३ -: गाथानुक्रम : विषय मगलाचरण बारह अनुप्रेक्षाओंके नाम अध्रु वानुप्रेक्षा अध्र वानुप्रेक्षाका सामान्य स्वरूप बंधुजनोंका संयोग कैसा है ! देह के संयोगकी अस्थिरता लक्ष्मीको अस्थिरता प्राप्त हुई लक्ष्मीका क्या करना चाहिये ? लक्ष्मीको धर्मकार्यमें लगानेवालेकी प्रशंसा मोहका माहात्म्य अशरणानुप्रेक्षा संसारमें कोई शरण नहीं है अशरण होने का दृष्टान्त शरण माननेवाला अज्ञानी है मरण आयुकर्मका क्षय होनेसे होता है निश्चयसे शरण कौन है संसारानुप्रेक्षा संसारका सामान्य स्वरूप नरकगति के दुःखोंका वर्णन तिर्यंचतिके दुःखोंका वर्णन मनुष्यगतिके दुःखोंका वर्णन देवगतिके दुःखोंका वर्णन चारों गतियोंमें कहीं भी सुख नहीं है यह जीव पर्यायबुद्धि है जिस योनिमें उत्पन्न होता है वहीं सुख मान लेता है इस प्राणीके एक ही भवमें अनेक संबंध ( अठारह नाते ) होते हैं एक भवमें अठारह ना होनेकी कथा २४ से २६ २७ २८ से २६ ३० से ३१ ३२ से ३३ ३४ से ३६ ४० से ४४ ४५ से ५७ ५८ से ६१ .२५ ६४ से ६५ २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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