Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
View full book text
________________
१४
विषयानुक्रमणी
or x१४०
५७३ ४५३ ४५०
४४
४१
५११
प्रश्नांक
प्रश्नांक निषेक .५५६ पुण्य प्रकृतियां
६२० नोकषाय
४६८ प्रकृतिबन्ध मोकषायका स्वरूप ४६६ प्रकृतिबन्धके भेद न्यग्रोध परिमण्डल ४७६ प्रकृतिबन्धापसरण
७२४
प्रकृतिसत्त्व पञ्च भागहार
५८६ प्रचला पञ्चेन्द्रियके ४७ भेद १४७ प्रचलाप्रचला परघात नामकर्म
५०१ प्रतरलोक परिकर्माष्टक
३ प्रतरांगुल परिधि १६ प्रत्येक वनस्पति
२३५ परिधि और क्षेत्रफलका नियम १७ प्रत्येक वनस्पतिके भेद २३७ परिहारविशुद्धि संयम ३३१ प्रत्येक शरीर नामकर्म ५१३ परिहारविशुद्धि संयम किसके ३३२ प्रत्याख्यानावरण परोदयमें बँधनेवालो प्रकृतियाँ ७११ प्रत्यागाल
७३६ पर्याप्त नामकर्म
प्रत्यावली
७४० पर्याप्तक १५४ प्रथमस्थिति
७३७ पर्याप्तकके गुणस्थान १६७ प्रथमोपशम सम्यक्त्व
३५५ पर्याप्ति
प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी प्राप्ति पर्याप्तिके भेद
कैसे
३६२ पर्याप्तियोंके आरम्भ और
प्रथमोपशम सम्यक्त्व छुटनेपर - पूर्णताका क्रम
१६५
अवस्था पर्याप्ति और प्राणमें भेद
प्रथमोपशम सम्यक्त्वी किस पंल्य
विधिसे श्रेणि चढ़नेका पात्र १२६ पल्यके भेद
प्रथमोपशम और द्वितोयोपशम
सम्यक्त्वमें अन्तर १०८ पाणिमुक्ता गति
प्रदेशबन्ध
५३६ पापकर्मका स्वरूप
६१७ प्रदेशसत्व
५७४ पाप प्रकृतियां
प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे अयोगपुद्गल विपाको स्वरूप
६२१
केवली पर्यन्त प्रत्येक गुणपुद्गल विपाको स्वरूप प्रकृतियां ६२२ स्थानी जीवके क्षेत्रका पूर्वके भेद
स्पर्शन पृथिवोकायिक
२३१ प्रमस और अप्रमत्त संयतका पुण्यकर्मका स्वरूप
४१६
१५७ १५८
५
६२०
४१२
काल
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132