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करणानुयोग-प्रवेशिका २३५. प्र०-प्रत्येक वनस्पति किसको कहते हैं ?
उ०—जिसमें एक जीवका एक शरीर होता है उसे प्रत्येक वनस्पति कहते हैं।
२३६. प्र०-साधारण बनस्पति किसको कहते हैं ?
उ.-जिसमें बहुतसे जीवोंका एक ही शरीर समान रूपसे होता है उसे साधारण वनस्पति कहते हैं।
२३७. प्र०-प्रत्येक वनस्पतिक कितने भेद हैं ? उ०-दो हैं-सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित । २३८. प्र०-सप्रतिष्ठित प्रत्येक किसको कहते हैं ?
उ०-जिस प्रत्येक वनस्पतिके आश्रय अनेक साधारण वनस्पति हों उसे सप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं।
२३९. प्र०-अप्रतिष्ठित प्रत्येक किसको कहते हैं ?
उ.-जिस प्रत्येक वनस्पतिके आश्रय कोई भी साधारण वनस्पति न हो, उसे अप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं।
२४०. प्र०-सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठितकी क्या पहचान है ?
उ०-जिस प्रत्येक वनस्पतिमें सिरा जैसे ककड़ीकी लकीर, संधि जैसे नारंगीकी फाँके, पर्व जैसे गन्नेकी गाँठ, गूढ हों तथा जिसको तोड़नेपर खटसे समान दो टुकड़े हो जायें वह सप्रतिष्ठित प्रत्येक है, और जिसकी सिरायें वगैरह स्पष्ट हो गई हों और जो तोड़नेपर बराबर न टूटे वह अप्रतिष्ठित प्रत्येक है। इसी प्रकार जिस वनस्पतिकी छाल मोटी हो वह सप्रतिष्ठित है और जिसकी छाल पतली हो वह अप्रतिष्ठित है। २४१. प्र०-साधारण वनस्पति सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिके ही रहती
. है या अन्यत्र भी रहती है ? उ०-पृथिवी, जल, तेज और वायुकायके शरीर, केवलोका शरीर, आहारक शरीर, देवोंका शरीर और नारकियोंका शरीर इन शरीरोंमें साधारण वनस्पतिका निवास नहीं है । शेष सब जीवोंके शरीरोंमें साधारण वनस्पतिका निवास रहता है।
२४२.३०-साधारण वनस्पतिके कितने भेद हैं ? उ०-दो हैं-नित्य निगोद और इतर निगोद । २४३. प्र०-नित्य निगोद किसको कहते हैं ?
उ.-जो अनादिकालसे निगोद पर्यायको हो धारण किये हुए हैं और जिन्होंने कभी भी त्रस पर्याय प्राप्त नहीं की उन जोवोंको नित्यनिगोद कहते हैं।
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