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करणानुयोग-प्रवेशिका २६८.३०-पाणिमुक्ता गति किसको कहते हैं ?
उ.--जैसे हाथसे तिरछे फेंके गये द्रव्यकी एक मोड़ेवाली गति होती है उसो प्रकार संसारो जीवोंकी एक मोड़ेवालो गतिको पाणिमुक्ता गति कहते हैं। यह गति दो समय' वाली होती है ।
२६९. प्र०-लांगलिका गति किसको कहते हैं ?
उ०-जैसे हल में दो मोड़े होते हैं वैसे ही दो मोड़ेवाली गतिको लांगलिका गति कहते हैं। यह गति तीन समयवाली होती है।
२७०. प्र०-गोमूत्रिका गति किसको कहते हैं ?
उ०-जैसे गायका चलते हुए मूत्र करना अनेक मोड़ोंवाला होता है उसो प्रकार तीन मोड़ेवाली गतिको गोमूत्रिका कहते हैं । यह गति चार समयवाली होती है।
२७१. प्र०-चार मोड़ेवाली गति क्यों नहीं होती?
उ०-लोकके मध्यसे लेकर ऊपर, नोचे और तिरछे क्रमसे विद्यमान आकाशके प्रदेशोंको पंक्तिको श्रेणि कहते हैं। इस श्रेणिके अनुसार ही जोवोंका गमन होता है। श्रेणिका उल्लंघन करके गमन नहीं होता। इसलिए ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँपर पहुँचनेके लिए चार मोड़े लेने पड़ें।
२७२. प्र०-समुद्घात किसे कहते हैं ?
उ०-मूल शरीरको बिना छोड़े जोवके प्रदेशोंके बाहर निकलनेको समुद्घात कहते हैं।
२७३. प्र०-समुद्घातके कितने भेद हैं ?
उ.-सात भेद हैं-वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, विक्रिया समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात और केवली समुद्घात।
२७४. प्र०-वेदना समुद्घात वगैरहका क्या स्वरूप है ?
उ० - बहुत पीड़ाके निमित्तसे आत्मप्रदेशोंके बाहर निकलनेको वेदना समुद्घात कहते हैं। क्रोध आदि कषायके निमित्तसे आत्मप्रदेशोंके बाहर निकलनेको कषाय समुद्घात कहते हैं। विक्रियाके निमित्तसे आत्मप्रदेशोंके बाहर निकलनेको विक्रिया समुद्घात कहते हैं। मरण होनेसे पहले नवीन पर्याय धारण करनेके क्षेत्र पर्यन्त प्रदेशोंके बाहर निकलनेको मारणान्तिक समुद्घात कहते हैं । अशुभ या शुभ तैजसके साथ आत्मप्रदेशोंके बाहर निकलनेको तैजस समुद्घात कहते हैं। प्रमत्त गुणस्थानवर्ती मुनिके आहारक
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