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करणानुयोग-प्रवेशिका असम्प्राप्तासपाटिका शरीर संहनन ), पाँच वर्णनाम ( कृष्ण, नील, रुधिर, पोत, शुक्ल वर्णनाम ), दो गंध नाम ( सुगन्ध, दुर्गन्ध ), पांच रस नाम (तित्त, कटुक, कसैला, खट्टा, मीठा नाम ), आठ स्पर्श नाम ( कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, स्निग्ध, सूक्ष्म, शीत और उष्ण नामकर्म ), चार आनुपूर्वी नाम (नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव ), एक अगुरु लघु नाम, एक उपघात नाम, एक परघात नाम, एक उच्छवास नाम, एक आताप नाम, एक उद्योत नाम, दो विहायोगति नाम ( प्रशस्त और अप्रशस्त ), एक त्रस नाम, एक स्थावर नाम, एक वादर नाम, एक सूक्ष्म नाम, एक पर्याप्त नाम, एक अपर्याप्त नाम, एक प्रत्येक शरीर नाम, एक साधारण शरीर नाम, एक स्थिर नाम, एक अस्थिर नाम, एक शभ नाम, एक अशुभ नाम, एक सुभग नाम, एक दुर्भग नाम, एक सुस्वर नाम, एक दुस्वर नाम, एक आदेय नाम, एक अनादेय नाम एक यशःकीर्ति नाम, एक अयश कीर्ति नाम, एक निर्माण नाम और एक तीर्थङ्कर नाम ।
४७२. प्र०-गति नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०-आयु कर्म के उदयसे जिस भावमें अवस्थित होनेपर शरीर आदि कर्म उदयको प्राप्त होते हैं, वह भाव जिस कर्मके उदयसे होता है उसको गति नामकर्म कहते हैं। उसके चार भेद हैं। जिस कर्मके उदयसे जीवोंके नारक भाव होता है वह नरक गति कर्म है। इसी प्रकार शेष भेदोंका भी अर्थ जानना।
४७३ प्र०-जाति नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०- जीवोंके सदृश परिणामको जाति कहते हैं। अतः जिस कर्मके उदयसे जोवोंमें अत्यन्त सदृशता उत्पन्न होती है उसको जाति नामकर्म कहा जाता है। उसके पाँच भेद हैं। जिस कर्मके उदयसे एकेन्द्रिय जीवोंकी एकेन्द्रिय जीवोंके साथ एकेन्द्रिय भावसे सदशता होती है, वह एकेन्द्रिय जाति नामकर्म है। उसके भी अनेक भेद हैं। इसी प्रकार दोइन्द्रिय जाति नाम आदि के विषयमें भी जानना।
४७४ प्र०-शरीर नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०-जिस कर्मके उदयसे आहार वर्गणाके पुद्गल स्कन्ध तथा तेजस और कार्मण वर्गणाके पुद्गल स्कन्ध शरीर योग्य परिणामोंके द्वारा परिणत होते हुए जीवके साथ सम्बद्ध होते हैं, उसको शरीर नामकर्म कहते हैं। उसके पांच भेद हैं। जिस कर्मके उदयसे आहार वर्गणाके पुद्गल स्कन्ध औदारिक शरीर रूपसे परिणत होते हैं उसे औदारिक शरीर नामकर्म कहते हैं। जिस कर्मके उदयसे आहार वर्गणाके पुद्गल स्कन्ध वैक्रियिक शरीर रूपसे परिस
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