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करणानुयोग-प्रवेशिका ६५०. प्र०-आठवें गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंकी बन्ध व्युच्छित्ति
होती है ? उ०-आठवें गुणस्थानके प्रथम भागसे निद्रा और प्रचलाकी बन्ध व्युच्छित्ति होती है। छठे भागमें तीर्थङ्कर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पञ्चेन्द्रिय, तैजस, कार्मण, आहारक, अंगोपांग, समचतुरस्र संस्थान, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिक, वैक्रियिक अंगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय इन तीस प्रकृतियोंकी व्युच्छित्ति होती है और अन्तिम भागमें हास्य, रति, भय और जुगुप्साको व्युच्छित्ति होती है। ६५१. प्र.-नौवें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में कितनी प्रकृतियोंका बन्ध
होता है? उ० -आठवें गुणस्थानमें बँधनेवाली ५८ प्रकृतियोंमें व्युच्छिन्न हुई ३६ प्रकृतियोंको घटानेपर शेष रही बाईस प्रकृतियोंका बन्ध नौवें गुणस्थानमें होता है।
६५२. प्र०-नौवें गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति होती है ?
उ०-अनिवृत्तिकरणके पांच भागोंमें क्रमसे पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया और संज्वलन लोभको बन्ध व्युच्छित्ति होती है। ६५३. प्र०-दसवें सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका
बन्ध होता है ? उ०-नौवें गुणस्थानमें बन्धयोग्य बाईस प्रकृतियोंमेंसे व्युच्छिन्न हुई पाँच प्रकृतियोंको घटानेपर शेष रहीं १७ प्रकृतियोंका बन्ध दसवें गुणस्थानमें होता है। ६५४. प्र० - दसवें गुणस्थानमें कितनो प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति
होती है। ____उल-दसवें गुणस्थानके अन्तमें पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, पाँच अन्तराय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्र इन सोलह प्रकृतियोंकी बन्ध व्युच्छित्ति होती है। ६५५. प्र०-ग्यारहवें उपशान्त कषाय गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियां
बंधती हैं? उ०-दसवें गुणस्थानमें जो १७ प्रकृतियोंका बन्ध होता है उनमेंसे व्युच्छिन्न हुई सोलह प्रकृतियोंको घटानेपर शेष रही एक सातावेदनीयका बन्ध होता है।
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