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'करणानुयोग- प्रवेशिका
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७०७. प्र० - चौदहवें गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंकी सत्त्व व्युच्छित्ति होती है ?
उ० - चौदहवें अयोगकेवली गुणस्थानके उपान्त्य समय में पाँच शरीर, पाँच बन्धन, पाँच संघात, छै संस्थान, तीन अंगोपांग, छै संहनन, पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस, आठ स्पर्श, स्थिर अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुस्वर- दु. स्वर, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगति, दुभंग, निर्माण, अयशस्कीर्ति, अनादेय, प्रत्येक, अपर्याप्त, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छूवास एक वेदनीय, नीच गोत्र इन बहत्तर प्रकृतियोंकी सत्त्व व्युच्छित्ति होती है और अन्त समय में एक वेदनीय, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यशस्कोर्ति, तीर्थङ्कर, मनुष्यायु और उच्च गोत्र, मनुष्यगत्यानुपूर्वी इन तेरह प्रकृतियोंकी सत्त्व व्युच्छित्ति होती है ।
७०८. प्र० - किन प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति उदयव्युच्छित्तिके पीछे होती है ?
उ०- देवायु, देवर्गात, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, अयशः कीर्ति इन आठ प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति पहले होती है, पीछे बन्धव्युच्छित्ति होती है । ७०९. प्र० - किन प्रकृतियोंकी उदयव्युच्छित्ति और बन्धव्युच्छित्ति एक साथ होती है ?
- मिथ्यात्व, भय, जुगुप्सा, हास्य, रति, पुरुषवेद, संज्वलन लोभके बिना १५ कषाय मनुष्यगत्यानुपूर्वी, स्थावर, आताप, सूक्ष्म, एकेन्द्रिय आदि चार जाति, साधारण, अपर्याप्त इन इकतीस प्रकृतियोंका बन्ध और उदय दोनों एक साथ व्युच्छिन्न होते हैं ।
७१० प्र० - किन प्रकृतियोंकी उदयव्युच्छित्ति बन्धव्युच्छित्तिके पीछे होती है ?
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उ०- पूर्वोक्त ८ + ३१ = ३६ प्रकृतियों से शेष जो इक्यासी प्रकृतियां रहती हैं उनका बन्ध व्युच्छेद पहले और उदय व्युच्छेद पीछे होता है ।
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७११. प्र० – परोदय से बंधनेवाली प्रकृतियाँ कौन-सी हैं ? उ०- तोर्थङ्कर, नरकायु, देवायु, नरक गति, देवगति, नरक गत्यानुपूर्वी, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग
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