Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 130
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका १०६ उ०—गुणकार रूप, होन हीन द्रव्य जहाँ पाये जायें उसे गुणहानि कहते हैं। ७३४. प्र०—फालि किसको कहते हैं ? उ०-समुदाय रूप एक क्रियामें जुदे-जुदे खण्ड करके भेद करनेका नाम फालि है। जैसे-उपशमन काल में प्रथम समय में जितना द्रव्य उपशमाया वह उपशमकी प्रथम फालि है, दूसरे समयमें जितना द्रव्य उपशमाया वह दूसरो फालि है। इसी तरह अन्यत्र भी जानना । ७३५. प्र०-आगाल किसको कहते हैं ? उ०-अपकर्षण करके द्वितीय स्थितिके निषेकोंके परमाणुओंको प्रथम स्थितिके निषेकोंमें मिलानेका नाम आगाल है। ७३६. प्र०-प्रत्यागाल किसको कहते हैं ? उ०-उत्कर्षण करके प्रथम स्थितिके निषेकोंके परमाणुओंको द्वितीय स्थितिके निषेकोंमें मिलाना प्रत्यागाल है। ७३७. प्र०-प्रथम स्थिति किसको कहते हैं ? उल-विवक्षित प्रमाणको लिए हुए नीचेके निषेकोंको प्रथम स्थिति कहते हैं। ७३८. प्र०-द्वितीय स्थिति किसको कहते है ? उ०-ऊपरवर्ती समस्त निषेकोंको द्वितीय स्थिति कहते हैं । ७३९. प्र०-उदयावली किसको कहते हैं ? ज०-वर्तमान समयसे लेकर आवलो मात्र कालको और उस कालमें स्थिति निषेकोंको आवली अथवा उदयावली कहते हैं। ७४०. प्र०-द्वितीयावली अथवा प्रत्यावली किसको कहते हैं ? उ.--उदयावलोके ऊपरवर्ती आवलीको द्वितीयावली अथवा प्रत्यावली कहते हैं। ७४१. प्र०-~अचलावली अथवा आबाधावली किसको कहते हैं ? उ०-बन्ध समयसे लगाकर एक आवलो काल तक कर्मोंकी उदीरणा आदि नहीं हो सकती। अतः उस आवलीको अचलावली अथवा आबाधावली कहते हैं। ७४२. प्र०—अतिस्थापनावली किसको कहते हैं ? उ०-द्रव्यका निक्षेपण करते हुए जिन आवलीमात्र निषकोंमें द्रव्यका निक्षेपण नहीं किया जाता है उसका नाम अतिस्थापनावली है। ७४३. प्र०-द्रव्य निक्षेपणका क्या अर्थ है ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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