Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका हैं। अतः चौथे गुणस्थानके अन्त समयमें इनके बन्धकी व्युच्छित्ति हो जाती है। ६४३. प्र०-पाँचवें देशविरत गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है? उ०-चौथे गुणस्थानमें जो ७७ प्रकृतियोंका बन्ध होता है उनमेंसे चौथे में व्यच्छिन्न हुई दस प्रकृतियोंको घटानेसे शेष रही ६७ प्रकृतियाँ पाँचवेंमें बंधती हैं। ६४४. प्र०-पाँचवें गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंकी बन्ध व्युच्छित्ति होती है ? उ०-चार प्रत्याख्यानावरण कषाय अपने उदयके निमित्तसे बंधती हैं। अतः पांचवें गुणस्थानके अन्त समयमें इनकी व्युच्छित्ति हो जाती है। .६४५. प्र-छठे प्रमत्तविरत गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है? उ०-पांचवें गुणस्थानमें ६७ प्रकृतियोंका बन्ध होता है, उनमेंसे व्युच्छिन्न हुई चार प्रत्याख्यानावरण कषायोंको घटानेपर शेष रही ६३ प्रकृतियोंका बन्ध छठे गुणस्थानमें होता है। ६४६. प्र.-छठे गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंकी बन्ध व्युच्छित्ति होती है ? 3०-अस्थिर, अशुभ, असातावेदनीय, अयशस्कोति, अरति और शोक ये छ प्रकृतियां प्रमादके निमित्तसे बंधती हैं। अतः छठे गणस्थानके अन्त समयमें इनके बन्धकी व्युच्छित्ति हो जाती है। ६४७. प्र०-सातवें अप्रमत्तविरत गुणस्थानमें बन्ध योग्य प्रकृतियां कितनी हैं? उ.-छठे गणस्थानमें ६३ प्रकृतियोंका बन्ध होता है और ६ की बन्ध व्युच्छित्ति होती है अतः ६३ मेंसे छै घटानेसे शेष ५७ बचती हैं। किन्तु सातवेंमें आहारक शरीर और आहारक अंगोपांगका बन्ध बढ़ जानेसे बन्ध योग्य प्रकृतियां ५६ हैं। ६४८. प्र०- सातवें गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंकी बन्ध व्युच्छित्ति होती है ? उ०-सातवें गुणस्थानके अन्त में एक देवायुको बन्ध व्युच्छित्ति होती है। ६४९. प्र०-आठवें अपूर्वकरण गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है ? उ०-सातवें गुणस्थानमें ५६ प्रकृतियोंका बन्ध होता है। उनमें से व्युच्छिन्न हुई देवायुको घटानेपर ५८ प्रकृतियोंका बन्ध आठवे में होता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132