Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 119
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका ६५६. प्र० - बारहवें और तेरहवें गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है ? उ०- एक सातावेदनीयका बन्ध होता है । ६५७. प्र० – ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंकी बन्ध व्युच्छित्ति होती है ? उ०- ग्यारहवें, बारहवें में एक भी प्रकृतिको बन्धव्युच्छित्ति नहीं होती । तेरहवें गुणस्थान में बँधनेवाली एक सातावेदनीयकी व्युच्छित्ति होती है। ६५८. प्र० - चौदहवें अयोगकेवली गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है ? - एक भी प्रकृतिका बन्ध नहीं होता । ६५९. प्र० - मिथ्यात्व गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ०- सम्यक्त्व प्रकृति, सम्यक् मिथ्यात्व, आहारकशरीर, आहारक अंगोपांग और तीर्थङ्कर प्रकृति- इन पाँच प्रकृतियोंका उदय इस गुणस्थानमें नहीं होता । अतः उदययोग्य १२२ प्रकृतियों में से पाँच घटानेपर ११७ का उदय होता है । ६६०. प्र० - मिथ्यात्व गुणस्थान में उदय व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी होती है ? उ० उ०- मिथ्यात्व गुणस्थानके अन्तिम समय में मिथ्यात्व, एकेन्द्रिय, दोन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चोइन्द्रिय, जाति, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण - इन दस प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति होती है । यह महाकर्म प्रकृति प्राभृतका उपदेश है । चूर्णि सूत्रके कर्ता आचार्य यतिवृषभके उपदेश से मिथ्यात्व गुणस्थानके अन्तिम समय में पाँच प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति होती है; क्योंकि चार जाति और स्थावर प्रकृतियोंको उदय व्युच्छित्ति सासादन गुणस्थान में मानी है । ६६१. प्र० - सासादन गुणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ०- पहले गुणस्थान में जो ११७ प्रकृतियोंका उदय होता है, उनमें से व्युच्छिन्न हुई पांच प्रकृतियोंको घटानेपर शेष ११२ रहती हैं । परन्तु सासादनमें नरकगत्यानुपूर्वीका उदय न होनेसे १११ प्रकृतियां उदययोग्य होती हैं । ६६२. प्र० - सासादन गुणस्थान में उदय व्युच्छित्ति कितनी प्रकृतियोंकी होती है ? ६६०. षट्खण्डागम, खण्ड ३, पु० ८ पृ० ६ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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