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करणानुयोग-प्रवेशिका उ०-विषम आकारको हुण्ड कहते हैं। जिस कर्मके उदयसे शरीरका आकार पूर्वोक्त पाँच आकारोंसे भिन्न एक विचित्र हो प्रकारका हो उसे हुण्डक संस्थान नामकर्म कहते हैं।
४८४. प्र०-शरीर अंगोपांग नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०-जिस कर्मके उदयसे शरीरके अंग और उपांगोंकी रचना होती है। उसके तीन भेद हैं-जिस कर्मके उदयसे औदारिक शरीरके अंग उपांग उत्पन्न हों वह औदारिक शरीर अंगोपांग नामकर्म है। इस प्रकार शेष दो का भी अर्थ कहना चाहिये।
४८५. प्र०-शरीरमें अंग उपांग कौनसे हैं ?
उ०-शरीरमें दो पैर, दो हाथ, एक नितम्ब, पीठ, हृदय और मस्तक ये आठ अंग होते हैं। इनके सिवाय अन्य उपांग होते हैं जैसे ललाट, भौं, कान, नाक, आँख, तालु, जीभ वगैरह।
४८६. प्र०-संहनन नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ-जिस कर्मके उदयसे शरीरमें हड्डी और उसकी सन्धियोंकी रचना हो।
४८७.३०-वज्रऋषभ नाराच शरीर संहनन नामकर्म किसको कहते
उ०-हड्डियोंके संचयको संहनन और वेष्टनको ऋषभ कहते हैं। जिस कर्मके उदयसे वज्रमय हड्डियाँ वज्रमय वेष्टनसे वेष्टित और वज्रमय नाराच से कीलित होती हैं।
४८८. प्र०-वज्रनाराच संहनन नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०-जिस कर्मके उदयसे पूर्वोक्त अस्थिबन्धन ही वज्रमय वेष्टनसे रहित हो।
४८९. प्र०-नाराच संहनन नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०-जिस कर्मके उदयसे नाराच अर्थात् कीलें सहित हाड़ हों किन्तु वज्रमय न हों।
४९०. प्र०-अर्धनाराच संहनन नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ.-जिस कर्मके उदयसे हाड़ोंकी सन्धियाँ नाराचसे आधी बिंधी हुई हों।
४९१.प्र.-कीलक संहनन नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ.-जिस कर्मके उदयसे हड्डियाँ परस्परमें कोलित हों, वह कीलक संहनन नामकर्म है।
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