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करेणीनुयोग-प्रवेशिका प्रकृतियाँ बन्ध योग्य हैं, क्योंकि मोहनीय कर्मकी सम्यमिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति इन दो प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता, केवल उदय और सत्त्व होता है तथा नामकर्मको ६३ प्रकृतियों में से पाँच बन्धन और पांच संघात चूंकि शरीर नामकर्मके अविनाभावी हैं इसलिये बन्ध और उदय अवस्थामें इन दसोंका अन्तर्भाव शरीर नामकर्ममें ही कर लिया जाता है। इसी तरह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शके २० भेदोंको उन्हीमें गर्भित करके बन्ध और उदय अवस्थामें केवल चारका ही ग्रहण किया जाता है। अतः २+१०+ १६= २८ के घटनेसे बन्धयोग्य प्रकृतियाँ १२० हैं।
६०६. प्र०-कर्मोंकी उदययोग्य प्रकृतियाँ कितनी हैं ?
उ०-५+६+२+२+४+६७+२+५=१२२ प्रकृतियाँ उदय योग्य होती हैं।
६०७. प्र०-कर्मोकी सत्त्वयोग्य प्रकृतियां कितनी हैं ?
उ.-ज्ञानावरण आदि आठ कर्मोंको क्रमसे ५+६+२+२+४+६३ +२+५= १४८ प्रकृतियाँ सत्त्वयोग्य हैं।
६०८. प्र.-घातिया कर्म किसको कहते हैं ? उ०-जो जोवके ज्ञानादिक गुणोंको घाते उसे घातिया कर्म कहते हैं। ६०९. प्र०-घातिया कर्मके कितने भेव हैं ? उ०-दो भेद हैं-सर्वघाती और देशघाती। ६१०. प्र०-सर्वघाती कर्म किसको कहते हैं ?
उ०—जो जीवके ज्ञानादिके गुणोंको पूरी तरहसे घाते उसे सर्वघाति कर्म कहते हैं।
६११. प्र०-देशघाति कर्म किसको कहते हैं ?
उ०-जो जीवके ज्ञानादि गुणोंको एक देश घाते उसे देशघाति कर्म कहते हैं।
६१२. प्र०-घातिया कर्म कौनसे हैं ?
उ०-पाँच ज्ञानावरण, दो दर्शनावरण, अट्ठाइस मोहनीय और पाँच अन्तराय-ये सब घातिया कम हैं। - ६१३. प्र०-सर्वघाती प्रकृतियाँ कितनी हैं ?
उ०-इक्कीस हैं-ज्ञानावरणकी एक केवलज्ञानावरण, दर्शनावरणकी ६ ( केवल दर्शनावरण और पाँचों निद्रा ), मोहनोयकी १४ (अनन्तानुबन्धी ४, अप्रत्याख्यानावरण '४, प्रत्याख्यानावरण ४, मिथ्यात्व और सम्यक्मिथ्यात्व)।
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