Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 101
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका ५३६. प्र.-प्रदेशबन्ध किसको कहते हैं ? उ.-प्रति समय एक जीवके जितने पुद्गल परमाणु कर्मरूप परिणमन करते हैं उनके प्रमाणको प्रदेशबन्ध कहते हैं। ५३७. प्र०-एक समय में एक जीवके कितने कर्मपरमाणु बँधते हैं ? उ०-प्रति समय एक जीवके एक समय प्रबद्धका बन्ध होता है । ५३८. प्र०-समयप्रबद्धका स्वरूप और उसका प्रमाण क्या है ? उ०- अभव्य राशिसे अनन्तगुने और सिद्धराशिके अनन्तवें भाग परमाणुओंकी एक कार्मण वर्गणा होती है और उतनी ही कार्मण वर्गणाओंका एक समयप्रबद्ध होता है। प्रति समय एक जीवके इतने कर्मपरमाणु बँधते हैं इसीसे इसे समयप्रबद्ध कहते हैं । यह एक साधारण प्रमाण है। योगकी तीव्रता अथवा मन्दताके अनुसार समयप्रबद्धमें परमाणुओंका प्रमाण बढ़ता घरता रहता है। ५३९. प्र०-समयप्रबद्ध के विभागका क्या क्रम है ? उ०-एक समयमें ग्रहण किया गया समयप्रबद्ध यथायोग्य मूलप्रकृति और उत्तरप्रकृतिरूप परिणमन करता है। सबसे कम भाग आयु कर्मरूप परिणमन करता है, उससे अधिक भाग दो भागोंमें समान रूपसे विभाजित होकर नामकर्म और गोत्रकर्मरूप परिणमन करता है। उन दोनों कर्मोके भागसे अधिक भाग तीन भागोंमें बराबर-बराबर विभाजित होकर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मरूप परिणमन करता है। इन तीनों कर्मोको मिलने वाले भागसे भी अधिक भाग मोहनीय कर्मरूप परिणमन करता है और मोहनीयसे भी अधिक भाग वेदनीय कर्मको मिलता है। आयु, गोत्र और वेदनीयको छोड़कर शेष पाँच वर्मोको जो भाग मिलता है वह उनकी उत्तर प्रकृतियोंमें यथायोग्य विभाजित हो जाता है। ५४०. प्रल-स्थितिबन्ध किसको कहते हैं ? उ०-कर्मरूप परिणत हुए स्कन्धोंमें आत्माके साथ ठहरनेकी मियादके बंधनेको स्थितिबन्ध कहते हैं। ५४१. ४०~-कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कितना है ? उ०- पांचों ज्ञानावरण, नवों दर्शनोवरण, पाँचों अन्न. राय और वेदनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तोस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है। मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है। नाम और गोत्रकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है और आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तैतीस सागर प्रमाण है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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