Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 106
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका ५६३. प्र०-द्वितीय वर्गणा किसको कहते हैं ? उ०-जघन्य वर्गसे एक अधिक अविभागो प्रतिच्छेदोंसे युक्त वर्गों के समूहको द्वितीय वर्गणा कहते हैं। ५६४. प्र०-स्पर्द्धक किसको कहते हैं ? उ०-उक्त प्रकारसे एक-एक अविभागी प्रतिच्छेद अधिक वर्गों के समूह रूप वर्गणा जहाँ तक उपलब्ध हों, उन सब वर्गणाओंके समूहको स्पर्द्धक कहते हैं। ५६५. प्र०-द्वितीय स्पर्द्धक किसको कहते हैं ? उ.-प्रथम स्पर्द्धकके ऊपर क्रमसे एक-एक अविभागी प्रतिच्छेद अधिकवाले वर्गोके समूह वर्गणा जब तक उपलब्ध हों, उन सब वर्गणाओंके समूहको द्वितीय स्पर्द्धक कहते हैं। ५६६. प्र०-गुणहानि किसको कहते हैं ? उ०-स्पर्द्धकोंके समूहको गुणहानि कहते हैं। ५६७. प्र०-गुणहानि आयाम किसको कहते हैं ? उ०-एक गुणहानिके समयोंके समूहको गुणहानि आयाम कहते हैं। ५६८. प्र०-नाना गुणहानि किसको कहते हैं ? उ०--गुणहानिके प्रमाणको नाना गुणहानि कहते हैं। ५६९. प्र०-अन्योन्याभ्यस्तराशि किसको कहते हैं ? उ०-नाना गुणहानि प्रमाण हुए रखकर उन्हें परस्परमें गुणनेसे जो प्रमाण होता है उसे अन्योन्याभ्यस्तराशि कहते हैं। ५७०. प्र०—स्थिति रचनाको अपेक्षा निषेकोंमें द्रव्यका प्रमाण लानेकी विधि क्या है? उ०-जैसे, किसो जोवने एक समयमें तिरसठ सौ परमाणुओंके समूहरूप समयप्रबद्धका बंध किया और उसमें ४८ समयकी स्थिति पड़ो। गुणहानि , नानागुणहानि ६, अन्योन्याभ्यस्तराशि ६४ स्थापन करके सर्व द्रव्यको साधिक डेढ़ गणहानिका भाग देने पर प्रथम निषेकका द्रव्य आता है। जैसे-तिरसठ सौको साधिक बारहका भाग देनेसे ५१२ आते हैं। प्रथम निषेकको दो गुणहानिका भाग देनेसे चयका प्रमाण आता है। जैसे ५१२ को १६ का भाग देनेसे ३२ आता है, यह चय है। सो द्वितीय आदि निषेकोंका द्रव्य एक-एक चय घटता जानना। जैसे ५१२, ४८०, ४४८, ४१६, ३८४, ३५२, ३२०, २२८ । इस तरह घटते-घटते जिस निषेकमें प्रथम निषेकसे आधा द्रव्य पाया जाये वहाँसे दूसरो गुणहानि प्रारम्भ होती है। जैसे-दूसरो गुणहानिके प्रथम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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