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करणानुयोग-प्रवेशिका निषेकका द्रव्य २५६ है। यहाँ चयका प्रमाण प्रथम गुणहानिसे आधा है अर्थात् १६ है । सो यहाँ भी द्वितीय आदि निषेकोंका द्रव्य क्रमसे एक-एक चय घटता हुआ जानना। जैसे २५६, २४०, २२४, २०८, १६२, १७६, १६०, १४४। इस प्रकार प्रथम गणहानिसे द्वितीय गुणहानिका द्रव्य और चयका प्रमाण जैसे आधा होता है वैसे ही तृतीय आदि गुणहानियोंमें अपनेसे पूर्वपूर्वको गुणहानियोंसे द्रव्य और चयका प्रमाण क्रमसे आधा-आधा होता जाता है। इस तरह नाना गुणहानि प्रमाण ६ गुण हानियोंमें निषेकोंके द्रव्यका प्रमाण लाना चाहिये। जैसे-तीसरी गुणहानिमें १२८, १२०, ११२, १०४, ६६, ८८, ८०,७२। चौथी गुणहानिमें ६४, ६०, ५६, ५२, ४८, ४४, ४०, ३६ । पांचवींमें ३२, ३०, २८, २६, २४, २२, २०, १८ । छठीमें १६, १५, १४, १३, १२, ११, १०,६।
५७१. प्र०-सत्त्व अथवा सत्ता किसको कहते हैं ?
उ०-अनेक समयोंमें बँधे हुए कर्मोंका विवक्षित काल में जीवके अस्तित्व होनेका नाम सत्त्व है।
५७२. प्र०-सत्त्वके कितने भेद हैं ?
उ०-सत्त्व भी चार प्रकारका है-प्रकृति-सत्त्व, प्रदेश-सत्त्व, स्थितिसत्त्व और अनुभाग-सत्त्व।
५७३. प्र०-प्रकृति सत्त्व किसको कहते हैं ?
उ०–अनेक समयोंमें बंधी हुई ज्ञानावरण आदि मूल कर्मों और उनको उत्तर प्रकृतियोंके अस्तित्वको प्रकृति सत्त्व कहते हैं।
५७४. प्र०-प्रदेश सत्त्व किसको कहते हैं ?
उ०-उन प्रकृति रूप परिणमे पुद्गल परमाणुओंके अस्तित्वको प्रदेश सत्त्व कहते हैं।
५७५. प्र०-एक जीवके अधिक से अधिक कितना प्रदेश सत्त्व होता है ?
उ०-प्रत्येक संसारी जोव एक-एक समयमें एक-एक समयप्रबद्धका बंध करता है और उन समयप्रबद्धोंका एक-एक निषेक क्रमसे निर्जराको प्राप्त होता है। जिन समयप्रबद्धोंके सब निषेक खिर गये उनका तो अस्तित्व ही नहीं रहा। शेषमेंसे किसी समयप्रबद्धका एक निषेक शेष रहा, बाकी निषक खिर गये, किसी समयप्रबद्धके दो निषेक शेष रहे, शेष निषेक खिर गये। इस क्रमसे जिस समयप्रबद्धका केवल एक हो निषक खिरा, उसके बाको सभी निषेक मौजूद हैं और जिसका एक भी निषेक नहीं खिरा उसके सभी निषेक मौजूद हैं। इस तरह बाकी बचे सभी परमाणुओं का प्रमाण कुछ कम डेढ़ गुण
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