Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 109
________________ ८८ करणानुयोग-प्रवेशिका बहुत कालमें उदय आनेके योग्य ऊपरके निषेकोंमें मिलाना स्थिति उत्कर्षण होता है तथा थोड़े अनुभाग वाले नीचेके स्पर्धकोंके परमाणुओंको बहुत अनुभागवाले ऊपरके स्पर्धकोंमें मिलानेसे अनुभाग उत्कर्षण होता है। ५८४.प्र०-अपकर्षण किसको कहते हैं ? । उ.-स्थिति और अनुभागके घटनेका नाम अपकर्षण है। ५८५. प्र.---स्थिति और अनुभागका अपकर्षण कैसे होता है ? उ०-बहत कालमें उदय आनेके योग्य ऊपरके निषेकोंके परमाणुओंको शीघ्र उदयमें आनेवाले नीचेके निषेकोंमें मिलानेसे स्थिति अपकर्षण होता है और बहुत अनुभाग वाले ऊपरके स्पर्धकोंके परमाणुओंको थोड़े अनुभाग वाले नीचेके स्पर्द्धकोंमें मिलानेसे अनुभाग अपकर्षण होता है। ५८६. प्र०-उत्कर्षण और अपकर्षणमें कितने परमाणु ऊपर नीचे - मिलाये जाते हैं ? उ०-विवक्षित सर्व परमाणुओंमें उत्कर्षण अथवा अपकर्षण भागहारका भाग देनेसे जो एक भाग मात्र परमाण आते हैं उनको यथायोग्य ऊपर अथवा नीचेके निषेकोंमें मिलानेसे उत्कर्षण अथवा अपकर्षण होता है। ५८७. प्र०-संक्रमण किसको कहते हैं ? उ०--एक प्रकृतिके परमाणुओंका सजातीय अन्य प्रकृति रूप होनेका नाम संक्रमण है। जैसे—विशुद्ध परिणामोंके निमित्तसे पहले बंधी हुई असाता वेदनोय प्रकृतिके परमाणुओंका सातावेदनीय रूप परिणमन होता है । ५८८.३०-संक्रमण करणका नियम क्या है ? उ०-बन्ध दशामें हो संक्रमण होता है । मूल प्रकृतियोंमें संक्रमण नहीं होता अर्थात ज्ञानावरण कर्मके परमाण दर्शनावरण रूप नहीं हो सकते। उत्तर प्रकृतियोंमें भी दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीयमें परस्पर संक्रमण नहीं होता तथा एक आयु दूसरी आयु रूप नहीं हो सकती। ५८९. प्र०-संक्रमणके लिए उपयोगी पाँच भागहार कौनसे हैं ? उ०- उद्वेलन, विध्यात, अधःप्रवृत्त, मुण-संक्रमण, सर्व संक्रमण-ये पाँच भागहार हैं। ५९०. प्र०-उद्वेलन संक्रमण किसको कहते हैं ? उ०-अधःप्रवृत्त आदि तीन करणोंके बिना ही उद्वेलन प्रकृतिके परमाणुओंमें उद्वेलन भागहारका भाग देने पर एक भाग मात्र परमाणु जहाँ अन्य प्रकृति रूप परिणमन करते हैं उसे उद्वेलन संक्रमण कहते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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