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करणानुयोग-प्रवेशिका - ३५९. प्र०-देशना लब्धि किसको कहते हैं ?
उ.-छै द्रव्य और नौ पदार्थोंका उपदेश करनेवाले आचार्य वगैरहके लाभको अथवा उपदेशित पदार्थको धारणाके लाभको देशनालब्धि कहते हैं ।
३६० प्र०-प्रायोग्य लब्धि किसको कहते हैं ?
उ०-ऊपर कही गयी तोन लब्धियों से युक्त जीव प्रति समय विशुद्ध होता हुआ आयुके बिना शेष सात कर्मों की स्थिति अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण शेष रखता है तथा पहले जो अनुभाग था, उसमें अनन्तका भाग देने पर बहुभाग प्रमाण अनुभागको देखकर शेष एक भाग प्रमाण अनुभागको रखता है। इस कार्यको करनेको योग्यताके लाभको प्रायोग्य लब्धि कहते हैं।
३६१. प्र०-करण लब्धि किसको कहते हैं ?
उ०-अधाकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण रूप परिणामोंके लाभको करण लब्धि कहते हैं । इसका स्वरूप पहले कहा जा चुका है।
३६२. प्र०-प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी प्राप्ति किस प्रकार होती है ?
उ-अनिवृत्तिकरण काल अन्तर्मुहूर्तके संख्यात भागोंमेंसे वह भाग काल बीत जाने पर जब एक भाग काल शेष रहता है तब प्रथम सम्यक्त्वके अभिमुख हुआ अनादि मिथ्यादृष्टि मिथ्यात्वका अन्तरकरण करता है और सादिमिथ्यादृष्टि जीव दर्शन मोहनीयका अन्तरकरण करता है । वह सत्तामें स्थित मिथ्यात्व प्रकृतिके द्रव्यको मिथ्यात्व, मिश्र और सम्यक्त्व प्रकृति रूप परिणमाता है। __ ३६३. प्र०-प्रथमोपशम सम्यक्त्वके छूटनेपर क्या अवस्था होती है ?
उ०-उपशम सम्यक्त्वका अन्तर्मुहर्तकाल बीतने पर अनादि मिथ्यादृष्टिके तो मिथ्यात्वका उदय होता है और सादि मिथ्यादष्टि या तो मिथ्यादृष्टि होकर वेदक अथवा उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त करता है या सम्यग्मिथ्यादृष्टि होकर वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त करता है।
३६४. प्र०-अन्तरकरण किसको कहते हैं ? . उ०-जिस कर्मका अन्तरकरण करना हो उसकी प्रथम स्थिति और द्वितीय स्थितिको छोड़कर मध्यवर्ती अन्तर्मुहर्त मात्र स्थितिके निषेकोंका अभाव करने को अन्तरकरण कहते हैं। जैसे-मिथ्यादृष्टि मिथ्यात्वकर्मका अन्तरकरण करता है। इसमें अन्तर्मुहूर्त काल लगता है । सो वह अनादिकालसे उदयमें आनेवाले मिथ्यात्वकर्मको अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति सम्बन्धो निषेकोंको छोड़कर उससे ऊपरके अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितिके निषेकोंको अपने स्थानसे ३६२. षट्खण्डागम, खं० १, भा० ६, चूलिका ८ ।
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