Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका कहते हैं। जैसे-मिथ्यादृष्टि गणस्थान है, सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान है आदि, और विशेष रूपसे कथन करनेको आदेश कहते हैं। जैसे-नारकी जीवोंके चार गुणस्थान होते हैं, तिर्यञ्चोंके पाँच गुणस्थान होते हैं आदि । ३९०. प्र०- संख्या अनुयोग किसका कथन करता है ? उ.-सत्प्ररूपणामें जिन पदार्थोंका अस्तित्व कहा गया है उनकी संख्याका कथन संख्या अनुयोगमें होता है। जैसे---मिथ्यादष्टि अनन्त हैं, सासादन सम्यग्दृष्टि पल्यके असंख्यातवें भाग हैं । इस कथनके भी दो प्रकार हैं-ओघ और आदेश। ३९१. प्र०-क्षेत्र अनुयोग किसका कथन करता है ? ___उ०-उक्त दोनों अनुयोगोंके द्वारा जाने हुए द्रव्योंकी वर्तमान अवगाहनाका कथन क्षेत्रानुयोग करता है। जैसे-मिथ्यादृष्टि जोव सर्वलोकमें रहते हैं, इसके भो पूर्ववत् दो भेद हैं। ३९२. प्र०-स्पर्शनानुयोग किसका कथन करता है ? उ०-उक्त तीन अनुयोगोंके द्वारा जाने हुए द्रव्योंके अतोतकाल विशिष्ट क्षेत्रका कथन अर्थात् भूतकाल में जितने क्षेत्रको स्पर्श किया है और वर्तमानमें जितने क्षेत्रको स्पर्श किया जा रहा है, उसका कथन स्पर्शनानुयोग करता है। इस कथनके भी पूर्ववत् दो प्रकार हैं । ३९३. प्र०-कालानुयोग किसका कथन करता है ? उ०-पूर्वोक्त चार अनुयोगोंके द्वारा जाने गये द्रव्योंके कालका कथन कालानुयोग करता है । जैसे-मिथ्यादृष्टि जीव सर्वदा पाये जाते हैं। इसके भी पूर्ववत् दो प्रकार हैं। ३९४. प्र०-अन्तरानुयोग किसका कथन करता है ? उ० -जिन पदार्थों के अस्तित्व, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन और कालका ज्ञान हो गया है उनके अन्तर कालका कथन अन्तरानुयोग करता है। जैसे-एक जीवकी अपेक्षा मिथ्यात्व गुणस्थानका अन्तरकाल कमसे कम अन्तर्मुहूर्त है। ३९५. प्र०-भावानुयोग किसका कथन करता है ? उ.-उक्त अनुयोगोंके द्वारा ज्ञात द्रव्योंके भावोंका कथन भावानुयोग करता है। जैसे-मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में औदायिक भाव होता है आदि । इस कथनके भो पूर्ववत् दो प्रकार हैं। ३९६. प्र०-अल्पबहुत्वानुयोग किसका कथन करता है ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132