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करणानुयोग-प्रवेशिका उ०-उक्त अनुयोगोंके द्वारा जाने हुए द्रव्योंके अल्प-बहुत्व हीनता, अधिकताका कथन अल्पबहुत्वानुयोग करता है। इस कथनके भी पूर्ववत् दो प्रकार है।
३९७. प्र०—मिथ्यादृष्टि जीव कितने हैं ? उ०-अनन्त हैं। ३९८. प्र०-सासादन सम्यग्दष्टिसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक
प्रत्येक गुणस्थानवी जीव कितने हैं ? उ०—पल्योपम असंख्यातवें भाग हैं। ३९९. प्र०-प्रमत्तसंयत जीव कितने हैं ?
उ०-कोटिपृथक्त्व प्रमाण हैं। 'पृथक्त्व' से तीन कोटिके ऊपर और नौ कोटिके नीचे जितनी संख्या है वह लेना चाहिए। अतः प्रमत्तसंयत जीवोंका प्रमाण पाँच करोड़, तेरानबे लाख, अठटानबे हजार, दो सौ छह है।
४००. प्र०-अप्रमत्तसंयत जीव कितने हैं ?
उ०-संख्यात हैं, अर्थात् प्रमत्तसंयत जीवोंके प्रमाणसे अप्रमत्तसंयत जीवोंका प्रमाण आधा है, क्योंकि प्रमत्तसंयत गुणस्थानके कालसे अप्रमत्तसंयत गुणस्थानका काल संख्यातगुणा हीन है।
४०१. प्र०-उपशम श्रेणीके चार गुणस्थानों में जीवोंका प्रमाण कितना
उ.-उपशम श्रेणोके प्रत्येक गुणस्थानमें एक समयमें जघन्यसे एक जीव प्रवेश करता है और उत्कृष्टसे चौवन जीव प्रवेश करते हैं। यह सामान्य कथन है। विशेषकी अपेक्षा निरन्तर आठ समय पर्यन्त उपशम श्रेणीपर चढ़नेवाले जीवोंमें अधिकसे अधिक प्रथम समय में सोलह, दूसरे समयमें चौबीस, तीसरे समय में तीस, चौथे समयमें छत्तीस, पांचवें समयमें बयालोस, छठे समय में अड़तालीस, सातवें समयमें चौवन और आठवें समयमें भी चौवन जीव उपशम श्रेणीपर चढ़ते हैं। इस सबका प्रमाण तीन सौ चार होता है।
४०२. प्र०-क्षपक श्रेणीके चार गुणस्थानोंमें जीवों का प्रमाण कितना
उ०-छै महीना। आठ समयमें क्षपक श्रेणोके योग्य आठ समय होते हैं । उनमें जघन्यसे एक जीव एक समयमें और उत्कृष्टसे एक सौ आठ जोव क्षपक गुणस्थानमें प्रवेश करते हैं। यह सामान्य कथन है। विशेषसे क्षपक श्रेणोवालोंका प्रमाण उपशम श्रेणीवालोंसे दुगुना है।
४०३. प्र०-सयोगकेवली जीव कितने हैं ?
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