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करणानुयोग-प्रवेशिका प्राप्त होते रहे। इस तरह पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र कालतक सम्यक मिथ्यात्व गुणस्थानमें जीव बने रहते हैं। उसके पश्चात नियमसे उसमें कोई जीव नहीं रहता। एक जीवको अपेक्षा सम्यग्मिथ्यादृष्टी जीवका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। किन्तु जघन्यसे उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। इससे अधिक कालतक कोई जीव इस गुणस्थान में नहीं ठहर सकता।
४१६. प्र०—असंयत सम्यग्दृष्टी जीव कितने काल तक होते हैं ?
उ.---नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा होते हैं, उनका कभी अभाव नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल साधिक तैंतीस सागर है। जो इस प्रकार है-कोई प्रमत्तसंयत या अप्रभत्त संयत या उपशम श्रेणी वाला जीव मरकर एक समय कम तेतीस सागर आयु वाले अनुत्तर विमानवासी देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहाँसे च्युत होकर पूर्वकोटिको आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। वहां अन्तर्मुहूर्त आयुके शेष रहने तक वह असंयत सम्यग्दृष्टी ही रहा। इसके पश्चात् अप्रमत संयमी होकर क्रमसे मुक्त हो गया। इस तरह अन्तर्मुहूर्त कम पूर्व कोटि अधिक तेतोस सागर असंयत सम्यग्दृष्टीका उत्कृष्ट काल होता है। ४१७. प्र.- ऊपर असंयत सम्यग्दृष्टी जीवको एक समय कम तैतीस
सागरकी आयु वाले देवोंमें ही क्यों उत्पन्न कराया है ? उ०-उसके बिना असंयत सम्यग्दृष्टी गुणस्थानका काल इतना नहीं बन सकता, क्योंकि जो पूरे तेंतीस सागरकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न होकर मनुष्योंमें उत्पन्न होगा। वह वर्ष पृथक्त्व आयुके शेष रहनेपर नियमसे संयम धारण कर लेगा और जो एक समय कम तेतीस सागरकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न होकर मनुष्योंमें उत्पन्न होगा वह अन्तर्मुहूर्त कम पूर्व कोटि काल तक असंयमके साथ रहकर फिर निश्चयसे संयम धारण करेगा।
४१८. प्र.-संयतासंयत जीव कितने काल तक होते हैं ?
उ०-नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा होते हैं, उनका कभी अभाव नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्टकाल कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष है। जो इस प्रकार है-कोई तिर्यञ्च या मनुष्य मिथ्यादृष्टी संज्ञो पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक सम्मूर्छन तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हुआ। सबसे लघु अन्तमुंहूर्त कालमें पर्याप्त होकर, विश्राम लेता हुआ, विशुद्ध होकर संयमासंयमी हो गया और पूर्व कोटि काल तक संयमासंयमको पालकर मरकर देव हो गया। तब संयमासंयम छूट गया। इस तरह आदिके तीन अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि प्रमाण संयमासंयमका उत्कृष्ट काल है।
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