Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 82
________________ करणानुयोग- प्रवेशिका ६१ एक बार सम्यक्त्व होके छूट जानेपर भी जीव अधिकसे अधिक कुछ कम अर्धं पुद्गल परावर्तन कालतक ही संसारमें ठहरता है । ४१४. प्र० – सासादन सम्यग्दृष्टी जीव कितने काल तक होते हैं ? उ०- नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय तक होते हैं और उत्कृष्टसे पत्योपमके असंख्यातवें भाग कालतक होते हैं। खुलासा इस प्रकार है - पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र उपराम सम्यग्दृष्टी जीव उपशम सम्यक्त्वके काल में एक समय मात्र शेष रहनेपर एक साथ सासादन गुणस्थानको प्राप्त हुए और एक समय तक सासादन सम्यग्दृष्टी रहकर दूसरे समय में सबके सब मिथ्यात्वमें चले गये । उस समय तीनों लोकों में कोई भी सासादन सम्यग्दृष्टो नहीं रहा । इस तरह नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यकाल एक समय प्राप्त हुआ । पल्योपमके असंख्यातवें भाग उपशम सम्यग्दृष्टी जीव उपशम सम्यक्त्वके काल में एक समयसे लेकर छै आवली अवशिष्ट रहनेपर सासादन गुणस्थानको प्राप्त हुए। वे जब तक मिथ्यात्वको प्राप्त नहीं होते तब तक अन्य भी उपशम सम्यग्दृष्टी सासादन गुणस्थानको प्राप्त होते रहते हैं । इस तरह उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग काल तक सासादन गुणस्थान पाया जाता है और एक जीवकी अपेक्षा सासादन गुणस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छै आवली है; क्योंकि उपशम सम्यक्त्वके कालमें कमसे कम एक समय और अधिक से अधिक छै आवली काल शेष रहने पर उपशम सम्यग्दृष्टी जीव सासादन गुणस्थानको प्राप्त होता है और जितना उपशम सम्यक्त्वका काल शेष रहता है उतना हो सासादन गुणस्थानका काल होता है । ४१५. प्र० - सम्यग्मिथ्यादृष्टी जीव कितने काल तक होते हैं ? उ० - नाना जोवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट से पल्योपम के असंख्यातवें भाग काल तक होते हैं। खुलासा इस प्रकार हैमोहनीय कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंको सत्ता रखनेवाले मिथ्यादृष्टि अथवा वेदक सम्यक्त्व सहित असंयत सम्यग्दृष्टी संयतासंयत तथा प्रमत्तसंयत गुणस्थान वाले जीव परिणामोंके निमित्तसे सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त हुए और वहाँ अन्तर्मुहूर्त काल तक ठहरकर मिथ्यात्वको अथवा असंयत सम्यदृष्टीको प्राप्त हो गये । तब सम्यक् मिथ्यात्व नष्ट हो गया। इस प्रकार उसका काल अन्तर्मुहूर्तं सिद्ध हुआ । इसी तरह पूर्वोक्त गुणस्थानवर्ती जीव सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुए और वहाँ अन्तर्मुहूर्तं कालतक रहे। जब तक वे वहाँ रहे तब तक अन्य भी पूर्वोक्त गुणस्थानवर्ती जोव सम्यक् मिथ्यात्वको Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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