Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 91
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका सोते हुए भी कार्य कर डालता है, बड़बड़ाता है और दांत किटकिटाता है उसे स्त्यानगृद्धि कहते हैं। ४५२. प्र०-निद्रा किसको कहते हैं ? उ.-जिसके तीव्र उदयसे जीव थोड़ा सोता है, उठाये जानेपर जल्दी उठ बैटता है, और थोड़ा-सा भी शब्द होनेसे जल्दी सचेत हो जाता है, उसे निद्रा कहते हैं। ४५३. प्र०-प्रचला किसको कहते हैं ? उ०--जिसके तीव उदयसे आंखें ऐसी रहती हैं, मानों उनमें रेत भरा है, सिर भारी रहता है और नेत्र बार-बार बन्द होते और खुलते हैं उसे प्रचला कहते हैं। ४५४. प्र०-वेदनीय कर्मके कितने भेद हैं ? उ०-दो भेद हैं-सातावेदनीय और असातावेदनोय । ४५५. प्रा-मोहनीय कर्मके कितने भेद हैं ? उ०-दो भेद हैं-दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय । ४५६. प्र०-दर्शन मोहनीय किसको कहते हैं ? उ०-देव, शास्त्र और गुरुमें रुचि अथवा श्रद्धा होनेको दर्शन या सम्यगः दर्शन कहते हैं। उसको जो मोहित करता है अर्थात विपरीत कर देता है, उसको दर्शन मोहनीय कर्म कहते हैं। सारांश यह है कि जिस कर्मके उदयसे कुदेवमें देव बुद्धि, कुशास्त्रमें शास्त्र बुद्धि और कुगुरुमें गुरुबुद्धि होती है, अथवा देव, गुरु, शास्त्रमें अस्थिर श्रद्धान रहता है, अथवा देव-कुदेव, शास्त्र-कुशास्त्र, गुरु-कुगुरु दोनोंमें श्रद्धा होती है, वह दर्शन मोहनीय है। ४५७. प्र०-दर्शन मोहनीयके कितने भेद हैं ? उ०-बन्धकी अपेक्षा दर्शन मोहनोय कर्म एक प्रकारका है किन्तु सत्त्वको अपेक्षा उसके तीन भेद हैं-सम्यक्त्व, सम्यक्-मिथ्यात्व और मिथ्यात्व । क्योंकि जैसे चक्कोमें दले गये कोदोंके कोदों, चावल और कन इस प्रकार तीन विभाग हो जाते हैं वैसे ही प्रथमोपशम सम्यक्त्व होनेके समय अपूर्वकरण आदि परिणामोंके द्वारा दले गये दर्शन मोहनीय कर्मके तीन भेद हो जाते हैं। ४५८. प्र०-सम्यक्त्व प्रकृति किसको कहते हैं ? ___ उ०-जिस कर्मके उदयसे देव, शास्त्र वगैरहकी श्रद्धामें शिथिलता आती है, वह सम्यक्त्व प्रकृति है। ४५९. प्र०-सम्यक्त्व प्रकृतिका 'सम्यक्त्व' यह नाम क्यों है ? . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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