________________
करणानुयोग- प्रवेशिका
५१
उ०- जिनेन्द्र भगवान्के द्वारा कहे गये छै द्रव्य, पाँच अस्तिकाय और नौ पदार्थों का श्रद्धान करनेको सम्यक्त्व कहते हैं ।
३५३. प्र० - सम्यक्त्व मार्गणाके कितने भेद हैं ?
उ०- छै भेद हैं- उपशम सम्यक्त्व, वेदक या क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, सम्यक् मिथ्यात्व, सासादन सम्यक्त्व और मिथ्यात्व | ३५४. प्र० - उपशम सम्यक्त्व किसको कहते हैं ?
उ०- अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ और मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व तथा सम्यक्त्व मोहनीय, इन सात कर्मप्रकृतियोंके उपशमसे, कीचड़ के नीचे बैठ जानेसे निर्मल हुए जलके समान जो पदार्थों का निर्मल श्रद्धान होता है उसे उपशम सम्यग्दर्शन कहते हैं। उसके दो भेद हैं-प्रथमोपशम सम्यक्त्व और द्वितीयोपशम सम्यक्त्व |
३५५. प्र० - प्रथमोपशम सम्यक्त्व किसको होता है ?
- चारों गतियोंमें से किसी भी गति में वर्तमान भव्य, सैनी पञ्चेन्द्रिय, पर्याप्तक, विशुद्ध परिणामी साकार उपयोगी, शुभलेश्या वाले और करण - लब्धि से सहित अनादि अथवा सादि मिथ्यादृष्टि जीवको ही प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी प्राप्ति होती है ।
उ०-
३५६. प्र० - लब्धियाँ कितनी हैं ?
उ०- पांच हैं - क्षयोपशम लब्धि, विशुद्धि लब्धि, देशना लब्धि, प्रायोग्य लब्धि और करण लब्धि । इनमें से चार लब्धियाँ तो भव्य, अभव्य सभीके होती हैं, किन्तु करण लब्धि भव्य के हो होती है और उसके होने पर सम्यक्त्व अवश्य होता है ।
३५७. प्र० - क्षयोपशम लब्धि किसको कहते हैं ?
उ० – जिस समय कर्मोंका अनुभाग प्रतिसमय अनन्तगुणा घटता हुआ उदय में आता है तब क्षयोपशम लब्धि होती है । क्योंकि उत्कृष्ट अनुभागके अनन्तवें भाग मात्र देशघाती स्पर्द्धकों का उदयाभाव रूपक्षय और उदयको न प्राप्त सर्वघाती स्पर्द्धकोंका सदवस्था रूप उपशमकी प्राप्तिका नाम क्षयोपशम लब्धि है ।
३५८. प्र० - विशुद्धि लब्धि किसको कहते हैं ?
उ०- क्षयोपशम लब्धिके होने से साता वेदनीय आदि प्रशस्त प्रकृतियों के बन्ध में कारण जो धर्मानुरागरूप शुभ परिणाम होता है उसकी प्राप्तिको विशुद्धि लब्धि कहते हैं ।
३५३. लब्धिसार, गा० २ ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org