Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 67
________________ ૪૬ करणानुयोग-प्रवेशिका -- - बारहवें दृष्टिवाद अंगके कितने भेद हैं ? ३०५. प्र० उ०- पांच भेद हैं-- परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्व और चूलिका । ३०६. प्र० - पूर्व के कितने भेद हैं ? उ०- चौदह भेद हैं- उत्पादपूर्व, अग्रायणी, वीर्यप्रवाद, अस्ति नास्ति: प्रवाद, ज्ञानप्रवाद, सत्यप्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याख्यानप्रवाद, विद्यानुवाद, कल्याणप्रवाद, प्रावावाय, क्रियाविशाल और लोकबिन्दुसार । ३०७. प्र० - अवधिज्ञान किसको कहते हैं ? उ०- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी मर्यादा लिये जो रूपी पदार्थोंको स्पष्ट जाने । ३०८. प्र० -- अवधिज्ञानके कितने भेद हैं ? उ०- दो भेद हैं- भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय । ३०९. प्र० - भवप्रत्यय अवधिज्ञान किसको कहते हैं ? उ०- भवके निमित्तिसे होनेवाले अवधिज्ञानको भवप्रत्यय कहते हैं । अर्थात् जो जीव नारकी या देवकी पर्याय धारण करता है, उसके अवधिज्ञान अवश्य होता है, इसलिये उसे भवप्रत्यय कहते हैं । ३१०. प्र० - भवप्रत्यय अवधि किसके होता है ? उ०-- भवप्रत्यय अवधिज्ञान देवों, नारकियों और तीर्थङ्करोंके होता है । ३११. प्र०—- गुणप्रत्यय अवधि किसको कहते हैं ? उ०- गुण अर्थात् व्रत नियम वगैरहके निमित्तिसे होनेवाले अवधिज्ञानको गुणप्रत्यय कहते हैं। ३१२. प्र०— गुणप्रत्यय अवधि किसके होता है ? उ०- मनुष्य और तिर्यश्वों के । ३१३. प्र०- - दूसरे प्रकार से अवधिज्ञानके कितने भेद हैं ? उ०- तीन भेद हैं- देशावधि, परमावधि और सर्वावधि । इनमें से देशाधितो भवप्रत्यय भी होता है और गुणप्रत्यय भी । शेष दोनों गुणप्रत्यय ही होते हैं । ३१४. प्र० - तीनों अवधिज्ञान किसके होते हैं ? उ०-- जघन्य देशावधि तो मनुष्य और तिर्यञ्चोंके ही होता है, देव नारकियोंके नहीं होता । उत्कृष्ट देशावधि संयमी मनुष्योंके ही होता है और परमावधि तथा सर्वावधि चरमशरीरी महाव्रती मनुष्योंके ही होते हैं । ३१५. प्र० - मन:पर्यय ज्ञान किसको कहते हैं ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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