Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 59
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका २४४.प्र.-इतर निगोद किसको कहते हैं ? उ०-जो बीचमें अन्य पर्याय धारण करके निगोदमें जाते हैं उन्हें इतर निगोद कहते हैं। २४५. प्र०—बादर और सूक्ष्म जीव कौन-कौनसे हैं ? उ.-पृथिवोकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, नित्यनिगोद और इतरनिगोद ये छै बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी होते हैं। बाकीके सब जीव बादर ही होते हैं, सूक्ष्म नहीं होते। २४६. ३०-स्थावर और त्रसोंके कितने गुणस्थान हैं ? उ०-स्थावर जीवोंके एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही होता है, अस जोवोंके चौदहों गुणस्थान हो सकते हैं। २४७. प्र०-योग किसको कहते हैं ? उ०-पुद्गल विपाकी शरीर और अंगोपांग नामकर्मके उदयसे मनोवर्गणा, वचनवर्गणा और कायवर्गगणाके अवलम्बनसे युक्त आत्माको जो शक्ति पुद्गल स्कन्धोंको कर्म और नोकर्मरूप परिणमाने में समर्थ है, उसे भावयोग कहते हैं और उस शक्तिके धारी आत्माके प्रदेशोंमें जो हलन-चलन होतो है वह द्रव्ययोग है। २४८. प्र-योगी के कितने भेद हैं ? उ०-पन्द्रह हैं-चार मनोयोग ( सत्य मनोयोग, असत्य-मनोयोग, उभयमनोयोग, अनुभय-मनोयोग ), चार वचनयोग ( सत्य-वचनयोग, असत्यवचनयोग, उभय-वचनयोग, अनुभय-वचनयोग) और सात काययोग औदारिक काययोग, औदारिक मिश्रकाययोग, वैक्रियिक काययोग, वैक्रियिक मिश्रकाययोग, आहारक काययोग, आहारक मिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग। २४९. प्र--सत्य मनोयोग वगैरहका क्या स्वरूप है ? उ०-घटको घट जानना या कहना सत्य है, घटको पट जानना या कहना असत्य है, कमंडलुको घट कहना या जानना उभय है क्योंकि कमंडल भो घटकी तरह पानी भरनेके काम आता है, इसीलिये सत्य है और कमण्डलु का आकार घट जैसा नहीं है इसीलिये असत्य है, और सत्य असत्यके निर्णयसे रहित पदार्थ अनुभय हैं । सत्य, असत्य, उभय और अनुभय रूप पदार्थों में जो मन और वचनकी प्रवृत्ति होती है अर्थात् चार प्रकारके पदार्थोंको जानने या कहने के लिये जीव जो प्रयत्न करता है सो सत्य आदि पदार्थोंके सम्बन्धसे चार प्रकारका मनोयोग और चार प्रकारका वचनयोग होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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