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करणानुयोग-प्रवेशिका २१४. प्र०-आभ्यन्तर उपकरण किसको कहते हैं ?
उ०-चक्षु इन्द्रियमें काले सफेद मण्डलकी तरह सब इन्द्रियोंमें जो निवत्तिका उपकार करता है, उसको आभ्यन्तर उपकरण कहते हैं।
२१५. प्र०-बाह्य उपकरण किसको कहते हैं ?
उ०-चक्षुमें पलकोंकी तरह सब इन्द्रियोंमें जो निर्वृत्तिका उपकार करता है, उसको बाह्य उपकरण कहते हैं।
२१६.३०-भावेन्द्रिय किसको कहते हैं ? उ०-लब्धि और उपयोगको भावेन्द्रिय कहते हैं। २१७. प्र०-लब्धि किसको कहते हैं ? उ०-ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशम विशेषको लब्धि कहते हैं। २१८. प्र०-उपयोग किसको कहते हैं ?
उ०-लब्धिके निमित्तिसे आत्माका जो परिणमन होता है, उसको उपयोग कहते हैं।
२१९. प्र०-द्रव्येन्द्रियके कितने भेद हैं ? उ०—पाँच हैं-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्ष और श्रोत्र । २२०. प्र०-स्पर्शन इन्द्रिय किसे कहते हैं ? उ०-जिसके द्वारा स्पर्शका ज्ञान हो उसे स्पर्शन इन्द्रिय कहते हैं। २२१. प्र०-रसना इन्द्रिय किसे कहते हैं? उ०-जिसके द्वारा रसका ज्ञान हो उसे रसना इन्द्रिय कहते हैं। २२२. प्र०-घ्राण इन्द्रिय किसको कहते हैं ? उ०-जिसके द्वारा गंधका ज्ञान हो उसे घ्राण इन्द्रिय कहते हैं। २२३. प्र०-चक्ष इन्द्रिय किसको कहते हैं ? उ०—जिसके द्वारा रूपका ज्ञान हो उसे चक्षु इन्द्रिय कहते हैं। २२४. प्र०-श्रोत्र इन्द्रिय किसको कहते हैं ? उ-जिसके द्वारा शब्दका ज्ञान हो उसे श्रोत्र इन्द्रिय कहते हैं। २२५. प्र०-किस इन्द्रियका कैसा आकार होता है ?
उ०-श्रोत्र इन्द्रियका आकार जौ की नालोके समान है। चक्षुका मसूरके समान, रसनाका आधे चन्द्रमा या खुणेके समान, घ्राणका कदम्बके फूलके समान आकार है और स्पर्शन इन्द्रिय अनेक आकारवाली है।
२२६. प्र०—किन जीवोंके कितनी इन्द्रियाँ होती है ? उ०-पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनसंतिकायिक । इन एकेन्द्रिय जीवोंके एक स्पर्शन इन्द्रिय हो होती है । लट आदि
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