Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 55
________________ ३४ - २०१. प्र० - मार्गणाके कितने भेद हैं ? उ० - चौदह हैं - गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञित्व और आहार । २०२. प्र० - गति किसको कहते हैं ? उ०- गतिनामा नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई जीवकी पर्याय विशेषको गति कहते हैं । २०३० प्र० - गतिके कितने भेद हैं ? उ०- चार हैं- नरकगति, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति और देवगति । २०४. प्र० - किस गति में कितने गुणस्थान होते हैं ? – देवगति और नरकगतिमें आदिके चार गुणस्थान होते हैं, तिर्यञ्चगतिमें आदिके पाँच गुणस्थान होते हैं और मनुष्यगतिमें चौदह गुणस्थान होते हैं । -02 करणानुयोग-प्रवेशिका २०५ प्र० - इन्द्रिय किसको कहते हैं ? उ०- आत्मा के चिह्न विशेषको इन्द्रिय कहते हैं । २०६. प्र० - इन्द्रियके कितने भेद हैं ? उ०- दो हैं - द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय | २०७. प्र - द्रव्येन्द्रिय किसको कहते हैं ? उ०- निर्वृत्ति और उपकरणको द्रव्येन्द्रिय कहते हैं । २०८. प्र० - निर्वृत्ति किसको कहते हैं ? - कर्मके द्वारा होनेवाली रचना विशेषको निर्वृत्ति कहते हैं । २०९. प्र० - निवृत्ति के कितने भेद हैं ? 1-02 उ० – दो हैं - आभ्यन्तर निर्वृत्ति और बाह्य निर्वृत्ति | - २१. प्र० - आभ्यन्तर निर्वृत्ति किसे कहते हैं ? उ०- आत्माके विशुद्ध प्रदेशोंको इन्द्रियोंके आकार रचना होनेको आभ्यतर निर्वृत्ति कहते हैं । २११. प्र० -- बाह्य निर्वृत्ति किसको कहते हैं ? उ०- पुद्गलोंकी इन्द्रियके आकार रचना होनेको बाह्य निर्वृत्ति कहते हैं । २१२. प्र० - उपकरण किसको कहते हैं ? उ०- निर्वृत्तिका उपकार करनेवाले पुद्गलोंको उपकरण कहते हैं । २१३. प्र० -- उपकरणके कितने भेद हैं ? उ०- दो हैं - आभ्यन्तर और बाह्य । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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