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करणानुयोग-प्रवेशिका 3०-देवनारकियोंके उपपाद जन्म ही होता है। जरायुज जन्मके समय (प्राणोके शरीरके ऊपर जालकी तरह जो रुधिर मांसकी खोल लिपटी रहती है उसे जरायु कहते हैं और उससे उत्पन्न होनेवालोंको जरायुज कहते हैं ) अण्डज ( अण्डेसे उत्पन्न होनेवाले ) और पोत ( जन्मके समय जिनके शरीरपर कोई आवरण नहीं होता तथा जो योनिसे निकलते ही चलने फिरने लगते हैं) इन तीन प्रकारके प्राणियोंके गर्भ जन्म ही होता है तथा शेष-जीवोंके सम्मूर्छन जन्म होता है।
१८५. प्र०-लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके कौन सा जन्म होता है ? उ०-लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके सम्मूर्छन जन्म होता है । १८६. प्र०-कौनसे जीवोंके कौन लिंग होता है ?
उ०-नारकी और सम्मूर्छन जीवोंके नपुंसक लिंग ही होता है । देवोंके पुल्लिग और स्त्रीलिंग ही होता है, शेष जोवोंके तोनोंमेंसे कोई भी लिंग होता है।
१८७. प्र०-प्राण किसे कहते हैं ?
उ०—जिनके संयोगसे यह जीव जीवन अवस्थाको और वियोगसे मरण अवस्थाको प्राप्त होता है उन्हें प्राण कहते हैं ।
१८८. प्र०-प्राणके कितने भेद हैं ? उ-दो हैं-द्रव्यप्राण और भावप्राण । १८९. प्र०-द्रव्यप्राण किसको कहते हैं ?
उ०-पुद्गलद्रव्यसे उत्पन्न हुए द्रव्य इन्द्रिय वगैरह की प्रवृत्तिको द्रव्यप्राण कहते हैं।
१९०. प्र०-भावप्राण किसे कहते हैं ?
उ०-आत्माकी जिस शक्तिके निमित्तसे इन्द्रिय वगैरह अपने कार्यमें प्रवृत्त हों, उसे भावप्राण कहते हैं ।
१९१. प्र०-द्रव्यप्राणके कितने भेद हैं ?
उ०-दस हैं-मन, वचन, काय, स्पर्शन इन्द्रिय, रसन इन्द्रिय, घ्राण इन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय, श्रोत्र इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास और आयु ।
१९२. प्र० -किस जीवके कितने प्राण होते हैं ?
उ०-सैनी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवके दशों प्राण होते हैं। असैनी पञ्चेन्द्रियपर्याप्तके मनके बिना नौ प्राण होते हैं। चौइन्द्रियके मन और श्रोत्र इन्द्रियके बिना आठ प्राण होते हैं। तेइन्द्रियके मन, श्रोत्र और चक्षुइन्द्रियके बिना सात प्राण होते हैं। दोइन्द्रियके मन, श्रोत्र, चक्षु और घ्राण इन्द्रियके
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